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बुधवार, 25 दिसंबर 2019

माटी मेरे गाँव की..

माटी मेरे गाँव की 
विधा :मुक्त गीत

माटी मेरे गाँव की, मुझको रही पुकार।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

बूढ़ा पीपल बाँह पसारे ।
अपलक तेरी राह निहारे।।
अमराई कोयलिया बोले।
कानों में मिसरी सी घोले।।
ऐसी गाँव की माटी मेरी
तरसे जिसको  संसार।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

स्नेहिल रस की धार यहाँ।
मलयज की है बहार यहाँ।।
नदिया की है निर्मल धारा।
शीतल जल है सबसे प्यारा।।
भोरे कुक्कुट बांग लगाए
मिला सहज उपहार ।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

माँ अन्नपूर्णा यहाँ विराजें।
ढोल मंजीरे मंदिर बाजे।।
खलिहानों में रत्न पड़े हैं।
हीरे - मोती खेत जड़े हैं।।
मन की दौलत पास हमारे
है सुंदर व्यवहार।

क्यों मुझको तुम भूल गए आ जाओ एक बार।।

पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।

क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।

सोमवार, 29 जनवरी 2018

कर्म





कल गिरा जमीं पर मुट्ठी बांध,
कल खोल हथेली जाएगा!
दो गज धरती के ऊपर से या
दो गज जमीन के नीचे ही,
तू माटी में मिल जाएगा!

माटी ही तेरी है सब कुछ,
माटी पर रहना सीख ले!
यह माटी सब कुछ देती है,
पर वापस भी ले लेती है!
माटी से जीना सीख ले!

तेरा नेम प्लेट पढ़ - पढ़ कर
वह भूमि तुझ पर हंसती है-
"तेरे बाद भी कोई आएगा
तेरा नेम प्लेट हटा करके,
वह अपनी प्लेट लगाएगा
जिसको तूने अपना समझा
कल 'गैरों' का हो जाएगा

हर क्षण जीती हूँ मैं

दोहराता है इतिहास स्वयं को
जो दिया, वही फिर पाएगा"
फिर दंभ क्यों,
इतराना क्यों?

तेरा नाम भी तेरा खुद का नहीं,
वह भी तो किसी ने दिया ही था!
फिर बंगला क्या और गाड़ी क्या?
ऊंचे महल और बाड़ी क्या?
सब कुछ तो धरा रह जाएगा!
तेरे साथ 'कर्म' ही जाएगा!

क्यों अहंकार ,
क्या लाया  है?
सब कुछ तेरा यह सोच-सोच
क्यों इतना तू भरमाया है?

तू प्यार कर, तू  स्नेह कर!
तू जीव मात्र पर दया कर!
नहीं तेरे पास कोई थाती ,
तो खुशी दे, मधु बोलकर!

तेरा कर्म ही सच्चा साथी है!
वह तेरा साथ निभाएगा!
सब छोड़ तुझे चल देंगे पर,
हमसफ़र वही बन जाएगा!
तेरे प्रयाण से पहले भी
वह कीर्ति तुझे दिलाएगा!

यह विश्व तेरा ऋणी होगा!
और तेरा कर्ज चुकाएगा!
फिर नाम तेरा स्वर्णाक्षर में,
इतिहास में लिखा जाएगा!


सुधा सिंह 🦋