मिशन पर किसी।
मारे जाते हैं मासूम,
संत और ऋषि।।
क्रोध की अग्नि में ,
भस्म सबको करेगा।
गेहूँ के साथ चाकी में,
घुन भी पिसेगा।।
कैद करके घरों में,
बिठाया हमें।
अपना अस्तित्व,
फिर से दिखाया हमें।।
दृष्टि उसकी मनुज पे,
हुई आज वक्र।
निकाला है उसने ,
पुनःअपना चक्र।।
शत का अर्थ जरासंधों,
को बतला रहा है।
सबक कर्मों का फिर ,
हमको सिखला रहा है।।
नाम उसका सुदर्शन ,
अब कलि(युग) में नहीं।
उसको संतुष्टि मात्र ,
एक बलि में नहीं।।
अनगिनत प्राण,
लेकर ही अब वो थमेगा।
जीत धर्म की अधर्म ,
पर वो निश्चित करेगा।।
खेलते हम रहे ,
उसकी जागीर से।
नष्ट की प्रकृति,
अपनी तासीर से।।
रूप विकराल ले ,
मान मर्दन को वो।
हमको औकात,
अपनी दिखाएगा वो।।
कहीं अम्फान, भूकंप ,
महामारी कोरोना।
डरता हर पल मनुज ,
ढूँढे रक्षित कोई कोना।।
अहमी मानव न,
घुटनों के बल आएगा।
खूब रोयेगा , बेहद
तब पछताएगा।
स्वयं हमने प्रलय को ,
है न्योता दिया।
अपने अपनों से ,
कैसा ये बदला लिया।।
चेत ले है समय ,
कब तू संभलेगा अब।
मानव जाति खत्म होगी,
दम लेगा तब???
सुन्दर क्षणिकाएँ।
जवाब देंहटाएंआभार गुरुदेव
हटाएंमुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
जवाब देंहटाएंकैद करके घरों में,
जवाब देंहटाएंबिठाया हमें।
अपना अस्तित्व,
फिर से दिखाया हमें।।
सही कहा प्रकृति के दोहन और कर्मों का हिसाब देने आया है प्रलयकाल है कलियुग का
बहुत ही सुन्दर सृजन।
रचना को अनुमोदित करती प्रतिक्रिया के लिए आभार नामना
जवाब देंहटाएंनाम उसका सुदर्शन ,
जवाब देंहटाएंअब कलि(युग) में नहीं।
उसको संतुष्टि मात्र ,
एक बलि में नहीं।।
अनगिनत प्राण,
लेकर ही अब वो थमेगा।
जीत धर्म की अधर्म ,
पर वो निश्चित करेगा।।
क्षमा के साथ- मिथक कथाओं का अनुमोदन करती रचना/विचार से कुछ सवाल (हैं तो कई, पर जो अभी याद आ रहे हैं) - तो फिर हिटलर का गैस चैम्बर, दारा शिकोह और उसकी सेना का सगे भाई द्वारा नरसंहार, हिरोशिमा पर परमाणु बम, 1947 के बँटवारे का क़त्लेआम, 1984 का दंगा ... ये सब किस युग में हुआ था? ये सारे किस सुदर्शन चक्र के परिणाम थे? तब भी क्या एक ही बलि हुई थी? तब भी तो अनगिनत प्राण ली गई थी ना? आखिर ये "सत्यमेव जयते" वाली असत्य पर सत्य की विजय कब होगी भला ?
खैर ! सोच अपनी-अपनी, विचार अपने-अपने ... तभी दुनिया रंगीन है ...
हटाएंहिटलर का गैस चैम्बर, दारा शिकोह और उसकी सेना का सगे भाई द्वारा नरसंहार, हिरोशिमा पर परमाणु बम, 1947 के बँटवारे का क़त्लेआम, 1984 का दंगा
सुबोध जी तब भी कलि था और अब भी .मिथक ही सही पर मान्यता है जब जब पाप बढ़ेगा तब तब किसी न किसी के निमित्त नर संहार होगा। जब किसी की मृत्यु आती है तो वह नियत स्थान पर किसी भी तरह पहुँच ही जाता है। औऱ जैसा कि आपने कहा...सोच अपनी-अपनी, विचार अपने-अपने ... तभी दुनिया रंगीन है ... मैं इसका भी अनुमोदन करती हूँ।
जी दी,
जवाब देंहटाएंआपकी रचना का सार जीवन-दर्शन का विश्लेषण करने का सार्थक प्रयास है।
साहित्यिक सुंदर अभिव्यक्ति।
काल कोई भी हो अच्छे बुरे का संतुलन-असंतुलन शाश्वत सत्य है। जब असंतुलन बढ़ जाता है प्रकृति स्वयं ही संतुलन का मार्ग निकाल लेती है।
सादर।
प्यारी श्वेता रचना का मर्म समझकर उसे विस्तार व समर्थन देने के लिए हृदयतल से तुम्हारी आभारी हूँ। धन्यवाद बहना
हटाएंसुधा जी चेतावनी के रूप में आपने बहुत शानदार सृजन किया है।
जवाब देंहटाएंमानव हर काल में प्रकृति से हारा है, स्वरूप कुछ भी हो ।
विकास और विनाश तो ब्रह्मांड में निरंतर चलता है, कारण अलग होते हैं फल मानव ही भुगतता है ।
बहुत सुंदर सृजन।
प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कुसुम दीदी
हटाएंआदरणीया दीदी बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित सृजन. एक-एक बंद लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंसादर
प्रतिक्रिया पढ़कर मन आल्हाद से भर गया।धन्यवाद बहना
हटाएंबहुत अच्छी रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपको देखकर दिली प्रसन्नता हुई ।बहुत बहुत स्वागत है आपका।