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सोमवार, 23 मार्च 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे - 5


25:कर्म :
माफी गलती की मिले, जुर्म क्षमा कब होय!
पीछे पछताना पड़े,पाप बीज जब बोय!!

26:सद्भावना :
आदर सबका कीजिए,रखिए मन सद्भाव!
परिसर में पसरे खुशी,तन मन लगे न घाव!!

27:खुशी:
मारा - मारा मृग फिरे, कस्तूरी की खोज!
मन अन्तर खुशियाँ छिपी,ढूँढ न बाहर रोज!!

28: जीवन:
राहें काँटों से भरी, जीवन की यह रीत।
पंथ बीच रुकना नहीं, मत होना भयभीत।।

29: नमस्ते
हाथ जोड़ कर कीजिए,सबका ही सम्मान।
व्याधि से भी दूर रहें , बढ़े जगत में मान।।

30: स्वच्छता
सुंदर हो वातावरण,किंचित हो न अशुद्ध।
साफ़ सफ़ाई कीजिए,बनिए सभी प्रबुद्ध।।







शनिवार, 25 जनवरी 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे : 4





21:
शस्य श्यामला ये धरा, मृत होती सुन आज।
वृक्षों से शोभा बढ़े , धरती का ये साज।।

22:
तरुवर का रोपण करें, तरु हैं देव समान ।
जीवन जो देते हमें, क्यों ले उन के प्रान।।

23:
वृक्षों के बिन ये धरा,हो जैसे अभिशाप।
आज अगर सुधि ली नहीं, करिए फिर संताप।।

24:
पेड़ों को मत काटिए, बढ़ता जाए ताप।
मरु बनती जाए धरा, हरियाली *दुरवाप।।

*दुरवाप - विशेषण [संस्कृत] जो कठिनता से प्राप्त हो सके । दुष्प्राप्य ।


सुधा सिंह व्याघ्र

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे-3




17:समय:

समय को कम न आँकिए,समय बड़ा बलवान।
भूपति भी निर्धन हुए, गया मान सम्मान।।

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18:उपासना:

कर उपासना ईश की,बिगड़े बनेंगे काज!
खुशियों की कुंजी यही, यही दिलाए ताज!
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19:कल्याण:
राम नाम रटते रहो ,फिर होगा कल्याण ।
तर जाएगा जीव तू ,खुश होंगे भगवान।।

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20:संसार

देन लेन से चल रहा, यह झूठा संसार ।
गठरी बाँधे कर्म की,जाना है उस पार।।



शनिवार, 21 दिसंबर 2019

कुछ जीवनोपयोगी दोहे:2




12:अग्निपथ:
अग्निपथ बनी जिंदगी, बढ़ ढाँढस के साथ।
डरकर रुक जाना नहीं, तिलक लगेगी माथ।।


13:अहंकार:
अहंकार मत पालिए,यह है रिपु समरूप।
अपनों से दूरी बढ़े,है यह अंधा कूप।।


14:अनुभव:
अनुभव सम शिक्षक नहीं,मान लीजिए बात।
सच्चा पथदर्शक यही,यह न करे प्रतिघात।।


15:जलधि:
खारा पानी जलधि का,तृष्णा करे न शांत।
जाए दरिया कूल तो,रहे न कोई क्लांत।।


16:प्रतिकार
अनुचित बात न मानिये,करिये जी प्रतिकार।
साथ रहे आदर्श तो ,भव सागर हो पार ।।


बुधवार, 13 नवंबर 2019

कुछ जीवनोपयोगी दोहे ..1




1:रिश्ते :

यारों इस संसार में, रिश्तों का न मोल। 
जिन नातों में प्रेम है ,  हैं वे ही अनमोल।। 

2:कालिमा :

मन में हो जब कालिमा, जग भी बैरी होय।  
हिय में प्यार जगाइये, मित्र लगे सब कोय।। 

3:अनुबंध :

सात फेरे लगते जब , बनते तब अनुबंध। 
जनमों का नाता बने,    फैले प्रेम सुगंध।। 

4:कलेवर :

रोज नए रंग देखकर, मन जाता है काँप । 
लोग कलेवर ओढ़ते,   जैसे ओढ़े साँप।। 

5:मान :

पाना हो यदि मान तो, कर लो ऐसे काम। 
मिले दुआएं लोक की, जग में होवे नाम।। 

6:प्रासाद :

सब चाहे प्रासाद को, नहीं झुग्गी की आस। 
शुचिता को हैं त्यागते , करते धर्म का नाश।। 

7:कर्महीनता 

कर्महीन हो सो रहे, सत्कर्मों को भूल। 
पीछे पछताना पड़े ,नाव न लागे कूल।। 


कुछ नए दोहे :

8:चिंतन 

चिंतन कर ले रे मना, चिंता दे बिसराय। 
पावन हो तव आतमा,हिय में हर्ष समाय।। 

9:अटल :
अटल इरादे हों अगर , सब कुछ सम्भव होय ।
मुट्ठी में हो ये जहां ,      मिले आसमां तोय।। 

10:आरक्षण :

सबको सबकुछ चाहिए,कम न किसी को भाय।
कर पसारे बैठे हैं,     आरक्षण मिली जाय ।।

11:कुर्सी 

स्वाभिमान को रौंदकर,   कुरसी पीछे धाय।
 सज्जनता बाकी नहीं, मातोश्री अकुलाय।। 

11 Nov 2019