सोमवार, 27 जनवरी 2020

कैसी ये प्यास है! (गीत )




कैसी ये प्यास है!! (गीत)
धुन :हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया



मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!
क्यों ये बुझती नहीं, कैसी ये प्यास है!!

बंद दरवाजे हैं, बंद हैं खिड़कियाँ!
ले रहा है कोई, मन में ही सिसकियाँ!!
क्यों घुटन है भरी, कैसी उच्छ्वास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

प्रेम भूले सभी, मिलती रुसवाइयाँ!
भीड़ में बढ़ रही देखो तन्हाइयाँ!!
कोई अपना कहाँ, अब कहो पास है!
मैं न जानू सनम, कैसा अहसास है!!

है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

खेल किस्मत का कोई भी समझा नहीं!
परती धरती हमेशा से परती रही!!
ढ़ो रही मनुजता, अपनी ही लाश है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है !!

सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️









रविवार, 26 जनवरी 2020

सुधा की कह मुकरियाँ


1:
जगह जगह की सैर कराए
कभी रुलाए कभी हँसाए
लगता है मुझको वह अपना
क्या सखि साजन?
 ना सखि सपना

2:
चंचल मन में लहर उठाए
आंगन भी खिल खिल मुस्काए
मैं उसकी आवाज़ की कायल
क्या सखि साजन?
 ना सखि पायल

3:
चमके जैसे कोई तारा
सबको वह लगता है प्यारा
ऊँचे गगन का व‍ह महताब
क्या सखि साजन?
 नहीं अमिताभ

4:
हर कोना उजला कर जाता
आशाओं के दीप जलाता
कभी क्रोध में आता भरकर
क्या सखि साजन?
नहीं दिवाकर

5:
करता जी फिर गले लगाऊँ
उनसे मिलने को अकुलाऊँ
मैं उनके बागों की बुलबुल
क्या सखि साजन?
ना सखि बाबुल

6:
उसका स्वर है मुझे  लुभाता
मुझको हरदम पास बुलाता
उसके मित्र सभी बाजीगर
क्या सखि साजन?
ना सखि सागर

सुधा सिंह व्याघ्र ✍️

शनिवार, 25 जनवरी 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे : 4





21:
शस्य श्यामला ये धरा, मृत होती सुन आज।
वृक्षों से शोभा बढ़े , धरती का ये साज।।

22:
तरुवर का रोपण करें, तरु हैं देव समान ।
जीवन जो देते हमें, क्यों ले उन के प्रान।।

23:
वृक्षों के बिन ये धरा,हो जैसे अभिशाप।
आज अगर सुधि ली नहीं, करिए फिर संताप।।

24:
पेड़ों को मत काटिए, बढ़ता जाए ताप।
मरु बनती जाए धरा, हरियाली *दुरवाप।।

*दुरवाप - विशेषण [संस्कृत] जो कठिनता से प्राप्त हो सके । दुष्प्राप्य ।


सुधा सिंह व्याघ्र

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

स्याह परतों के नीचे :





स्याह परतों के नीचे, सत्य कब तक छुपेगा?
धूल हिय से हटा , सबकुछ निर्मल दिखेगा!!

दीपक हमारा बुझाकर न सोचो ,
तुम्हारा मकां ज्यादा रोशन दिखेगा!!

लड़खड़ाते हुओं को उठाकर दिखाओ,
उनके आशीष से दिन तुम्हारा बनेगा!!

पंथ में तुम किसी के न कंटक बिछाओ,
चले उस पंथ तुम जो, तुम्हें वह चुभेगा!!

द्वेष के भावों से कुछ न हासिल  'सखे',
रखें सद्भाव  मन  में तो जीवन खिलेगा!!

फेंक कर कीच सूरज पे भ्रम में न रहना,
अब न चमकेगा व‍ह, न दोबारा उगेगा!!

दिखे गर जो खा़मी , दिखा दें हमें,
सुधरने का हमको भी अवसर मिलेगा!!


सुधा सिंह व्याघ्र ✍️


शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

सुधा की कुंडलियाँ - 6



26:
आधा :
पूरा ही सब चाहते , आधा देते छोड़।
उर संतुष्टि मिले नहीं, ज्यादा की है होड़ ।।
ज्यादा की है होड़, होड़ क्यों लगे न भाई ।
भाई देगा वित्त , तभी है बाबा माई।।
माई भूला अद्य , रहा जब ध्येय अधूरा।
अधूरा तभी मनुज,चलन न निभाता पूरा।।

27:
पड़ोसी :
नगरों में जबसे बसे, सबसे हैं अनजान!
मेरे कौन पड़ोस में, नहीं जरा भी ज्ञान!!
नहीं जरा भी ज्ञान,सुनो जी कलयुग आया !
भूले अपना कर्म, पड़ोसी धर्म भुलाया!!
कहे 'सुधा' सुन बात, शूल मिलते डगरों में!
रहे पड़ोसी पास , ध्यान रखिए नगरों में!!

28:
धागा :
धागे सबको जोड़ते, करें न फिर भी गर्व
सोहे भ्राता हाथ में, जब हो राखी पर्व ।
जब हो राखी पर्व, प्रेम आपस में बढ़ता।
बनता जब यह चीर, देह की शोभा बनता।।
कहे 'सुधा' सुन मित्र, द्वेष तब मन से भागे।
जुड़ते टूटे बंध, जगे हिय स्नेहिल धागे।।




बुधवार, 8 जनवरी 2020

सुधा की कुंडलियाँ-5


सुधा की कुंडलियाँ

21:कुनबा
छोटा कुनबा है सही, खुश रहते सब लोग।
हृदय में कटुता न रहे,बढ़े प्रेम का योग।।

बढ़े प्रेम का योग, नहीं छल बल से नाता।
इक दूजे के *साथ ,साथ* हर एक निभाता।।
कहे सुधा ललकार,*कथन यह लगे न खोटा।*
रखो याद यह बात,रहे नित कुनबा छोटा।।



 22:पीहर
बेटी तेरी बावरी,  डूबी पीहर याद।
भुला सकूँ तुमको नहीं ,बाबुल प्रेम अगाध।।

बाबुल प्रेम अगाध,नहीं सजना घर जाना।
रहती सखियाँ संग,याद है धूम मचाना।।
कहे सुधा सुन आलि, मायका सुख  की पेटी।
समझो हिय के भाव, विदा तुम करो न बेटी।।


23:पनघट
पनघट  हुआ उदास है, पनिहारिन  किस देश।
नीरवता है छा गई,मन को पहुँचे ठेस।।

मन को पहुँचे ठेस, भाव ये किसे सुनाऊँ।
मैं उजड़ा वीरान,किसी के काम न आऊँ।।
दुखी सुधा है आज, हुए सोते अब मरघट।
संस्कृति है शोकार्त्त,अद्य निराश है पनघट।।


24:सैनिक
सैनिक सीमा पर खड़ा ,सजग रहे दिन रात।
देश प्रेम सब कुछ अहो ,मात पिता अरु भ्रात।।

मात पिता अरु भ्रात, घाम अति सहता सरदी।
तन पर झेले घात, बदन पर पहने वरदी ।।
करती सुधा प्रणाम, कर्म उनका यह दैनिक।
साहस का प्रतिरूप,त्याग दे जीवन सैनिक।।

25:कोयल
कूजति कोयल  बाग में,सुन मनवा हरषाय।
स्वागत में मधुमास के,कली कली मुसकाय।।

कली कली मुसकाय,दिवस बासंती आए।
हर्षित बालक वृद्ध,राग बासंती गाएँ।।
प्यारा यह मधुमास,छटा की रहे न अनुमिति।
देख प्रकृति का रूप,बाग में कोयल कूजति।।








रविवार, 5 जनवरी 2020

हायकू


हायकू-
घना कुहरा~
लाठी टेके चलता
बूढ़ा आदमी!

अँधेरी रात~
दूर से आती
झींगुरों की आवाज।

भोर की लाली~
चूल्हे पर खौलती
गुलाबी चाय।

जोर की आँधी~
कपड़े उतारती 
डोरी से गोरी।

तेज बारिश~
पेड़ के नीचे कुत्ता
कंपकपाता 








शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे-3




17:समय:

समय को कम न आँकिए,समय बड़ा बलवान।
भूपति भी निर्धन हुए, गया मान सम्मान।।

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18:उपासना:

कर उपासना ईश की,बिगड़े बनेंगे काज!
खुशियों की कुंजी यही, यही दिलाए ताज!
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19:कल्याण:
राम नाम रटते रहो ,फिर होगा कल्याण ।
तर जाएगा जीव तू ,खुश होंगे भगवान।।

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20:संसार

देन लेन से चल रहा, यह झूठा संसार ।
गठरी बाँधे कर्म की,जाना है उस पार।।