क्या तूने अपने चित्र पर सूक्ष्म
विश्लेषणात्मक दृष्टि डाली??
कितनी खूबसूरती से तेरी कूची ने
सजाई थी इस सृष्टि को
अपने कोरे केनवास पर,
कहीं गुंजायमान था
पखेरुओं का कलरव मधुर गान
कहीं परिलक्षित थी
पर्वतों की ऊँची मुस्कान
नदियों निर्झरों समंदरों
का कल - कल उर्मिल आल्हाद
हरित वृक्ष लताओं से सजी
वादियों का आशीर्वाद
बिखेरे थे तूने आशाओं के
रंग अनेकों, इस कैनवास पर
कि हो जाए य़ह रंगबिरंगी
दुनिया हुलसित
हो हर दिशा पुष्पों
की गमक से सुरभित
पसरी थी चतुर्दिक तेरी तूलिका
से खींची मनोहारी अद्भुत रेखाएँ
चित्ताकर्षक सबकुछ सुखद ललाम..
फिर क्या सूझी तुझे कि
तूने एक मानव भी उगा दिया
अपनी आखिरी लकीर से प्रकृति को दगा दिया
छीन ली सदा सदा के लिए उसके चेहरे की लाली
ओ चित्रकार,
क्या तूने अपने इस चित्र पर पुनः निगाह डाली??