ठहरो!!!
मेरे बारे में कोई धारणा न बनाओ।
यह आवश्यक तो नहीं,
कि जो तुम्हें पसंद है,
मैं भी उसे पसंद करूँ।
मेरा और तुम्हारा
परिप्रेक्ष्य समान हो,
ऐसा कहीं लिखा भी तो नहीं।
हर जड़, हर चेतन को लेकर
मेरी धारणा, अवधारणा
यदि तुमसे भिन्न है...
तो क्या तुम्हें अधिकार है
कि तुम मुझे अपनी दृष्टि
में हीन समझ लो।
जिसे तुम उत्कृष्टता
के साँचे में तौलते हो,
कदाचित् मेरे लिए वह
अनुपयोगी भी हो सकता है।
तुम्हें पूरा अधिकार है
कि तुम अपना दृष्टिकोण
मेरे सामने रखो।
परन्तु मेरे दृष्टिकोण को गलत
ठहराना क्या उचित है??
क्या मैंने अपने कर्मों
और कर्तव्यों का
भली- भाँति
निर्वाहन नहीं किया???
क्यों मेरा स्त्रीत्व
तुम्हें अपने पुरुषत्व
के आगे हीन जान पड़ता है??
आख़िर कब तक मैं
अपने अस्तित्व के लिए तुमसे लडूंँ??
और यह भी तो कहो कि
अगर मेरा अस्तित्व खत्म हो गया
तो क्या तुम
अपना अस्तित्व तलाश पाओगे???
सुधा सिंह 📝
उत्तम 😊
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत खूब ......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कामिनी जी 🙏 🙏 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙏 🙏 🙏
हटाएंसार्थक लिखा है ... सबका अपना अपना वजूद होना चाहिए ... अपना अपना दृष्टिकोण होने में कोई बुराई नहीं ... और इसी से खुद का अस्तित्व है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नासवा जी 🙏 🙏
हटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंhttps://iwillrocknow.blogspot.com/
बहुत बहुत शुक्रिया नीतीश जी. 🙏 जी जरूर आपके ब्लॉग पर आऊँगी.
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-01-2019) को "कटोरे यादों के" (चर्चा अंक-3231) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!सुधा जी ...बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शुभा जी 🙏 🙏
हटाएंजिसे तुम उत्कृष्टता
जवाब देंहटाएंके साँचे में तौलते हो,
कदाचित् मेरे लिए वह
अनुपयोगी भी हो सकता है।
तुम्हें पूरा अधिकार है
कि तुम अपना दृष्टिकोण
मेरे सामने रखो।
परन्तु मेरे दृष्टिकोण को गलत
ठहराना क्या उचित है??
सुन्दर सार्थक एवं सटीक....
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏 🙏
हटाएंवाह बहुत सुन्दर अनुपम असाधारण सुधा जी सीधा मन तक उतरता ।
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया कुसुम दी .
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दीपशिखा जी
हटाएंपना अपना वजूद होना चाहिए....सुधा जी
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया. 🙏🙏🙏🙏
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