कैसी ये प्यास है!! (गीत)
धुन :हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!
क्यों ये बुझती नहीं, कैसी ये प्यास है!!
बंद दरवाजे हैं, बंद हैं खिड़कियाँ!
ले रहा है कोई, मन में ही सिसकियाँ!!
क्यों घुटन है भरी, कैसी उच्छ्वास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!
प्रेम भूले सभी, मिलती रुसवाइयाँ!
भीड़ में बढ़ रही देखो तन्हाइयाँ!!
कोई अपना कहाँ, अब कहो पास है!
मैं न जानू सनम, कैसा अहसास है!!
है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!
खेल किस्मत का कोई भी समझा नहीं!
परती धरती हमेशा से परती रही!!
ढ़ो रही मनुजता, अपनी ही लाश है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है !!
सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️
शुक्रिया आदरणीय सर 🙏
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत दी। बेहद भावपूर्ण।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता ❤️
हटाएंबेहद खूबसूरत भावों से सम्पन्न गीत रचा है आपने ।बहुत उम्दा सृजन सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंमीनाजी बहुत बहुत स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर. इन सराहनीय शब्दों के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आ. 🙏 🙏
हटाएंउम्दा प्रस्तुति है। आप अच्छा लिखते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर 🙏 🙏 स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर
हटाएंबेहतरीन, हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी ,सादर
जवाब देंहटाएंआभार सखे!
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