आस |
दिनांक :2.11.19
विषय :आस
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।
मन उजाला भर गया, और धुंध भी छटती रही ।।
वो मिलेगा एक दिन, चाहा था जिसको ऐ सखी ।
थाम कर उम्मीद का दामन, चली मैं उस गली ।।
पांँव में छाले पड़े, और याद में तिल - तिल जली।
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।
उनकी मीठी बातों ने, पल पल हँसाया था मुझे ।
ख्वाबों ने आ आके, नींदों में जगाया था मुझे।।
जिन्दगी सुख दुख के पंखे, से सदा झलती रही।
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।
आज खुशियों के गगन में, सुख का सूरज है उगा।
निविड़ तम को भेद करके, भोर भी है अब जगा।।
प्रिय मिलन की प्यास मेरी , आज है बुझती रही।
पलकों में सपने सजाए, आस मन पलती रही ।।
सुधा सिंह 🦋
वाह बेहद खूबसूरत पंक्तियां सजाई है आपने
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्यारी अनु
हटाएंवाहहहहह बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद अनु जी
हटाएंवाह! वाह! क्या बात है ।बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ।
जवाब देंहटाएंपल्लवी मैम 🙏 🙏 धन्यवाद
हटाएंबहुत ही सुंदर लयबद्ध रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मीना जी. 🙏
हटाएंआस की प्यास को जीवंत करती कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏 🙏
हटाएंबहुत सुंदर सृजन है सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंमन मोहक सरस ।
शुक्रिया दी 🙏 🙏
हटाएंअति सुन्दर गीत ! क्षमा करें आदरणीया परन्तु मात्राओं पर विशेष ध्यान दें !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आ. कृपया त्रुटियाँ इंगित करें. 🙏
हटाएंवाह बहुत सुंदर आदरणीया मैम 👌
जवाब देंहटाएंसादर नमन सुप्रभात 🙏
शुक्रिया आँचल जी 🙏 🙏 🙏
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आ.नदीश जी🙏🙏🙏
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