शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

इस गगन से परे

 गीत :इस गगन से परे (10,12)


इस गगन से परे, 

है मेरा एक गगन  

झूमते ख्वाब हैं  

नाचे चित्त हो मगन 

1

अपनी पीड़ा को 

खुद से परे कर दिया 

दीप उम्मीद का  

देहरी पर धर दिया 

अब धधकती नहीं 

मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से... 

2

प्यारी खुशियों से 

वो जगमगाता सदा 

चंदा तारों से 

हरदम रहे जो लदा 

नाचती कौमुदी 

होता मन का रंजन .... इस गगन से...

3

हुआ उज्ज्वल धवल 

मेरे मन का प्रकोष्ठ 

गाल पर लालिमा 

मुस्कुराते हैं ओष्ठ

हर्ष से झूमता 

फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...


 



 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇