माटी मेरे गाँव की |
माटी मेरे गाँव की, मुझको रही पुकार।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
बूढ़ा पीपल बाँह पसारे ।
अपलक तेरी राह निहारे।।
अमराई कोयलिया बोले।
कानों में मिसरी सी घोले।।
ऐसी गाँव की माटी मेरी
तरसे जिसको संसार।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
स्नेहिल रस की धार यहाँ।
मलयज की है बहार यहाँ।।
नदिया की है निर्मल धारा।
शीतल जल है सबसे प्यारा।।
भोरे कुक्कुट बांग लगाए
मिला सहज उपहार ।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
माँ अन्नपूर्णा यहाँ विराजें।
ढोल मंजीरे मंदिर बाजे।।
खलिहानों में रत्न पड़े हैं।
हीरे - मोती खेत जड़े हैं।।
मन की दौलत पास हमारे
है सुंदर व्यवहार।
क्यों मुझको तुम भूल गए आ जाओ एक बार।।
पुकारती पगडंडियाँ।
इस ओर फिर कदम बढ़ा।।
माटी को आके चूम लो।
एक बार गांव घूम लो।।
हम अब भी अतिथि को पूजें
हैं ऐसे संस्कार।।
क्यों मुझको तुम भूल गए, आ जाओ एक बार।।
गाँव का बहुत सुंदर चित्रण ,लाज़बाब ,सादर नमन सुधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया 🙏 🙏 स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर.
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-2019) को "शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता लागुरी 'अनु '
शुक्रिया लोकेश जी🙏🙏
जवाब देंहटाएंगाँव की याद दिलाती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नृपेंद्र जी
हटाएंबहुत प्यारी कोरी कोरी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजी दी एकदम कोरी ,करारी ,प्यारी।आभारी हूँ दी🙏🙏🙏
हटाएंगाँव का अच्छा शब्द-चित्रण ... पर अब माहौल सब जगह "परिवर्त्तन प्रकृत्ति का नियम है" को चरितार्थ करते प्रतीत हो रहे हैं ... शायद ...
जवाब देंहटाएंजी आदरणीय, आपका एक एक शब्द सही है।परंतु चाहती हूँ मेरी अपनी सोच है कि फिर से वही दौर आये।लौट आये वो दिन जिनको मैंने अपने शब्दों के माध्यम से जिया है उन्हें आत्मसात किया है।काश ......
हटाएं