कनकपुष्प..
जेठ की कड़कती दुपहरी में
जब तपिश और गर्मी से सब
लगते हैं कुम्हलाने ।
नर नारी पशु पाखी सबके
बदन लगते हैं चुनचुनाने ।
जब सूखने लगते हैं कंठ
और हर तरफ मचती है त्राहि त्राहि।
तब चहुंँदिस तुम अपनी
रक्तिम आभा लिए बिखरते हो ।
सूरज की तेज प्रखर
रश्मियों में जल जलकर
तुम और निखरते हो।
तुम जो जीवन की इन विडम्बनाओं को
ठेंगा दिखाते हुए सोने से दमकते हो।
अब तुम ही कहो गुलमोहर
तुम्हें कनक कहूँ या पुष्प ।
गुलमोहर तुम कनकपुष्प ही तो हो,
जो पुष्प की तरह अपना सुनहरा
रक्ताभ लिए खिलखिलाते हो।
और जीवन के सबसे कठिन दौर में
भी बिना हताश हुए मुस्कुराते हो।
हे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
तो अतिश्योक्ति न होगी!!!
जेठ की कड़कती दुपहरी में
जब तपिश और गर्मी से सब
लगते हैं कुम्हलाने ।
नर नारी पशु पाखी सबके
बदन लगते हैं चुनचुनाने ।
जब सूखने लगते हैं कंठ
और हर तरफ मचती है त्राहि त्राहि।
तब चहुंँदिस तुम अपनी
रक्तिम आभा लिए बिखरते हो ।
सूरज की तेज प्रखर
रश्मियों में जल जलकर
तुम और निखरते हो।
तुम जो जीवन की इन विडम्बनाओं को
ठेंगा दिखाते हुए सोने से दमकते हो।
अब तुम ही कहो गुलमोहर
तुम्हें कनक कहूँ या पुष्प ।
गुलमोहर तुम कनकपुष्प ही तो हो,
जो पुष्प की तरह अपना सुनहरा
रक्ताभ लिए खिलखिलाते हो।
और जीवन के सबसे कठिन दौर में
भी बिना हताश हुए मुस्कुराते हो।
हे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
तो अतिश्योक्ति न होगी!!!
बहुत ही बेहतरीन रचना सुधा जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया अनुराधा जी 🙏
हटाएंवाह!वाह! बेहतरीन,सुधा मैम ।
जवाब देंहटाएंआभार पल्लवी मैम
हटाएंवाह बहुत सुन्दर रचना कनक पुष्प सुंदर शब्द मन भाया।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम
धन्यवाद कुसुम दी. आपकी प्रतिक्रिया मन में जोश भरती है 🙏
हटाएंचर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शास्त्री जी. सादर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर... ,लाजबाब.. रचना
जवाब देंहटाएंसखी कामिनी बहुत बहुत आभार 🙏
हटाएंवाह ! सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंआभार अनिता जी. 🙏 🙏
हटाएंसुधा सखी, गुलमोहर को गुरु मान लिया !
जवाब देंहटाएंकनक पुष्प गाथा मन को भा गई.
दिनकरजी की पंक्ति याद आ गई...
"लाक्षा गृह में जो जलते हैं,वे ही सूरमा निकलते हैं."
आपकी प्रतिक्रिया ने मेरी रचना को मायने दे दिए नुपूरम जी. बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/05/2019 की बुलेटिन, " माउंट एवरेस्ट पर मानव विजय की ६६ वीं वर्षगांठ - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया शिवम जी 🙏 🙏 नमन
हटाएंकनक पुष्प की गुरूता मुबारक...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया वाणी जी. आपको भी बहुत बहुत मुबारक. सादर अभिवादन 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उर्मिला दीदी. सादर नमन 🙏
हटाएंप्राक्रितिक सुंदरता से सराबोर ,कोमल एहसास वाली सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंहे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
तो अतिश्योक्ति न होगी!!! ...
सच में क़ुदरत का नायाब सबक़ है गुलमोहर ...