लो आ गया एक और दिवस
तथाकथित विश्व मजदूर दिवस।
होंगे बड़े बड़े भाषण, बड़ी बड़ी बातें,
मजदूर दिवस के नाम पर
पीठासीनों पदाधिकारियों को
होगा एक दिन का अवकाश।
पर मजदूर को इसका भी कहाँ आभास।
इस तथ्य से अनजान
अनभिज्ञ कि उसके नाम से भी
पूरी दुनिया में होती है छुट्टी।
वह डँटा रहता है पूरी निष्ठा से
अपनी जिन्दगी के मोर्चे पर
छेनी - हथौडी लिए,
पत्थर ढोता, बड़ी - बड़ी अट्टालिकाओं
के रूप संवारता
कि दो जून की दाल रोटी
का हो जाए इंतजाम।
फिर बड़े - बड़े ख्वाब सजाता मजदूर,
अपने सुनहरे कल की उम्मीद बांधे
सो जाता है फूंस की
जर्जर झोपड़ी में
कच्ची पक्की जमीन पर
फटे लत्तों की गूदड़ी बिछाकर,
अपना स्वप्न महल सजाकर।
और रोज की तरह
गुजर जाता है यह
तथाकथित मजदूर दिवस भी।
श्रमिकों के सम्मान में सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया रितु जी 🙏 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद सखी अनिता. 🙏
हटाएंश्रमिकों को उनका उचित सम्मान मिलना चाहिए श्रमिक दिवस पर बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति सुधा जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी 🙏 🙏
हटाएंसुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्व मोहन जी आपका बहुत बहुत आभार. 🙏 🙏 🙏 सादर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
६ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
शुक्रिया श्वेता जी 🙏
हटाएंना जाने कितने ही मजदूर दिवस आए और गए। मजदूरों की हालत नहीं बदली है।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने मीना जी
हटाएंप्रहार भी तंज भी और व्यवस्था पर व्यंग भी बहुत शानदार रचना सार्थक कुछ चिंतन देती।
जवाब देंहटाएंसमीक्षा के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दी 🙏 🙏 🙏
हटाएंवाह!बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभा जी
हटाएंबेहतरीन सृजन ....
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी
हटाएंवाह बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनुराधा जी
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