बरस जा ऐ बदरी..
तेरे आने से
इस दरख्त को भी
जीने की आस जगी है।
बरस जा ऐ बदरी
फिर से अनंत प्यास जगी है।।
पपीहा बन तेरी बूंद को तरसता रहा है।
बेरुखी तेरी पल - पल ये सहता रहा है।।
बनके परदेसी तू तो भटकती रही है।
बेवफा हर जगह तू बरसती रही है।।
तेरी उम्मीद में, ये तो ठूँठ हो गया।
भूला हरियाली, चिर नींद में सो गया।।
इसे सदियों से बस तेरा इंतजार था।
सोच माजी इसका कितना खुशहाल था।।
परिंदों का ये आसरा था बना।
मुसाफिरों को देता रहा है पना(ह)।।
कभी इस पर बहारों ने अंगड़ाई ली।
कभी इसने हवाओं से सरगोशी की।
ठूंठ बनकर के आज, ये पड़ा है यहाँ।
है चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।।
बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता।
बरस जा ऐ बदरी.......
तेरे आने से
इस दरख्त को भी
जीने की आस जगी है।
बरस जा ऐ बदरी
फिर से अनंत प्यास जगी है।।
पपीहा बन तेरी बूंद को तरसता रहा है।
बेरुखी तेरी पल - पल ये सहता रहा है।।
बनके परदेसी तू तो भटकती रही है।
बेवफा हर जगह तू बरसती रही है।।
तेरी उम्मीद में, ये तो ठूँठ हो गया।
भूला हरियाली, चिर नींद में सो गया।।
इसे सदियों से बस तेरा इंतजार था।
सोच माजी इसका कितना खुशहाल था।।
परिंदों का ये आसरा था बना।
मुसाफिरों को देता रहा है पना(ह)।।
कभी इस पर बहारों ने अंगड़ाई ली।
कभी इसने हवाओं से सरगोशी की।
ठूंठ बनकर के आज, ये पड़ा है यहाँ।
है चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।।
बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता।
बरस जा ऐ बदरी.......
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 10/06/2019 की बुलेटिन, " गिरीश कर्नाड साहब को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंठूंठ बनकर के आज, ये पड़ा है यहाँ।
जवाब देंहटाएंहै चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।।
बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता।
बरस जा ऐ बदरी.......सच अब तो बरखा बहार आ जाए बेसब्री से इंतज़ार है बेहतरीन रचना सखी
वाह असाधारण रचना सुधा जी। बहुत सुंदर भाव अनंत प्यास अब तो आजा बरखा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
सुधा मैम , बड़े मन से पुकारा है। बादलों ने आपकी पुकार सुन ली।
जवाब देंहटाएंAti sunder rachana
जवाब देंहटाएंसुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबेहद सराहनीय सृजन दी....भावपूर्ण अभिव्यक्ति👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंहै चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।। बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता... बेसब्री से इंतज़ार
जवाब देंहटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंसुधा दी, बरसात के लिए तरसते पशु पक्षी एवं मानव की करुण पुकार को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने।
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