रविवार, 5 मई 2019

वाह रे चापलूसी........


वाह रे चापलूसी, तुझमें भी बात है।
तू जिसके पास होती,वह बन्दा बड़ा खास है।।

दुम हीनों को दुम दे, तू श्वान बनाती है।
जीभ लपलपाना , तू उसको सिखाती है।।

यस मैम, जी हुजूरी, तू जिससे कराती है।
कंगाल हो जो बंदा, मालामाल बनाती है।।

धर्म, कर्म, शर्म को, तू मुंह न लगाती है।
पास हो ये जिनके, उनसे दूर चली जाती है।।

रख राम राम मुँह में, यही बात सिखाती है
छुरी हो बगल में, यही सबक देकर जाती है

ईमानदारी और प्रतिभा से, तू बैर कराती है
निठल्लों, निकम्मों को, तू शेर बनाती है।।

कर बॉस की प्रशंसा, कुर्सी के पाँव चटाती है।
तू भूल गई मानवता, तुझे शर्म नहीं आती है।।

वाह रे चापलूसी........

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत खूब लिखा आपने 👌👌👌

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    1. प्रिय अनुराधा जी बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को "आग बरसती आसमान से" (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏 🙏

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