दर्द |
दर्द कहाँ सुंदर होता है
दर्द को भला कभी कोई अच्छा कहता है
दर्द सालता है
दर्द कचोटता है, चुभता है
इसका रूप भयावह है
फिर दर्द को क्यों किसी को दिखाना
इसे छुपाओ तकिये में, गिलाफों में,
किसी काली अँधेरी कोठरी में
या बंद कर दो दराजों में
ताले चाबी से जकड़ दो
कि कहीं किसी
अपने को दिख ना जाए
अन्यथा यह चिपक जाएगा उसे भी
जो तुम्हें प्रिय हैं, बहुत प्रिय..
दर्द को छुपा दीजिए उसी तरह
जिस तरह घर में अतिथियों के आने से पहले छुपाए जाते हैं सामान
अलमारियों के पीछे, कुछ खाट के नीचे, कि सब कुछ साफ़ सुथरा दिखना चाहिए
बिलकुल बेदाग.......
आडंबर का पूरा आवरण ओढ़ लीजिए, पहन लीजिए एक मुखौटा .....
कि यह दर्द बेशर्म है बड़ा
उस नादान बच्चे की तरह...
जो हमारे सारे राज़
खोल देता है आगन्तुकों के समक्ष ...
और उसे भान भी नहीं होता
दबा दीजिए उसे रसातल में, पाताल में या फेंक दीजिए उसे आकाश गंगा में ..
कि कहीं ये रूसवा न कर दे हमें
हमेशा- हमेशा के लिए...