शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

मर्जी तो मेरी ही चलेगी......


आज कल वो रोज मिलने लगा है.
बेवक्त ही, आकर खड़ा हो जाता है
मेरी दहलीज पर.
"कहता है- तुम्हारे पास ही रहूँगा.
बड़ा लगाव है, बड़ा स्नेह है तुमसे."

पर मुझे उससे प्यार नहीं.
भला एक तरफ़ा प्यार
कौन स्वीकार करेगा .
मुझे भी स्वीकार नहीं.

हाँ, थोड़ी बहुत जान - पहचान है उससे.
पर यूँ ही... हर किसी से
थोड़े ही दिल लगाया जाता है.

जब - तब झिड़क देती हूँ.
उसे दुत्कार भी देती हूँ,
पर 'हिकना' है वो.
मानता ही नहीं.

जतन तो कई किए मैंने
उसे अपने से दूर करने के.
पर, आ जाता है मुँह उठाए."
और अड़ा रहता है  बेलौस सा.

बस मेरे पीछे ही पड़ गया है.
बड़ा नामुराद है वो साहब

कहता है- 'दर्द हूँ मैं.
कर लो कुछ भी,
मर्जी तो मेरी ही चलेगी."

📝 सुधा सिंह ♥



**'हिकना' (देशज शब्‍द ) - जो किसी की नहीं सुनता,
अपने मन की बात सुनने वाला.

2 टिप्‍पणियां:

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