तहरीर
अपने हाथों से अपनी तकदीर लिखनी है
अब मुझे एक नई तहरीर लिखनी है।
डूबेगी नहीं मेरी कश्ती साहिल पे आके
समंदर के आकिबत अब जंजीर लिखनी है ।
जिनकी कोशिश थी हरदम झुके हम रहें
उनके हिस्से अब अपनी तासीर लिखनी है ।
रहे ताउम्र लड़ते गुरबतों में तूफानों से जो
देके मुस्कान उन्हें मंद समीर लिखनी है ।
रूसवा होते रहे जो आशिक महफ़िलों में सदा
इज्जत-ओ-एहताराम उनकी नजीर लिखनी है।
होश हो जाए फाख्ता मुल्क के गद्दारों के
कुछ ऐसी अब मुझे तदबीर लिखनी है।
आफताब बन चमके नाम- ए- हिन्दोस्तां 'सुधा'
तहजीब की एक ऐसी जागीर लिखनी है।
*आक़िबत= अन्त, परिणाम, भविष्य
तदबीर =तरकीब, युक्ति
सुधा सिंह 📝
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