स्याह परतों के नीचे, सत्य कब तक छुपेगा?
धूल हिय से हटा , सबकुछ निर्मल दिखेगा!!
दीपक हमारा बुझाकर न सोचो ,
तुम्हारा मकां ज्यादा रोशन दिखेगा!!
लड़खड़ाते हुओं को उठाकर दिखाओ,
उनके आशीष से दिन तुम्हारा बनेगा!!
पंथ में तुम किसी के न कंटक बिछाओ,
चले उस पंथ तुम जो, तुम्हें वह चुभेगा!!
द्वेष के भावों से कुछ न हासिल 'सखे',
रखें सद्भाव मन में तो जीवन खिलेगा!!
फेंक कर कीच सूरज पे भ्रम में न रहना,
अब न चमकेगा वह, न दोबारा उगेगा!!
दिखे गर जो खा़मी , दिखा दें हमें,
सुधरने का हमको भी अवसर मिलेगा!!
सुधा सिंह व्याघ्र ✍️
वाह बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सुधा जी 👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनु जी 🙏 🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-01-2020) को "बेटियों एक प्रति संवेदनशील बने समाज" (चर्चा अंक - 3591) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,सुधा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी 🙏 🙏
हटाएंसुंदर स्त्री और सार्थक सृजन सुधा जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दी, आप बहुत दिनों बाद आईं, अच्छा लगा
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंस्त्री को सत्य पढ़ें
जवाब देंहटाएंवाह!!
जवाब देंहटाएंदीपक हमारा बुझाकर न सोचो
तुम्हारा मकां रौशन दिखेगा
वाह!! लाजवाब पँक्ति ������
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
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