शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

सुधा की कुंडलियाँ - 6



26:
आधा :
पूरा ही सब चाहते , आधा देते छोड़।
उर संतुष्टि मिले नहीं, ज्यादा की है होड़ ।।
ज्यादा की है होड़, होड़ क्यों लगे न भाई ।
भाई देगा वित्त , तभी है बाबा माई।।
माई भूला अद्य , रहा जब ध्येय अधूरा।
अधूरा तभी मनुज,चलन न निभाता पूरा।।

27:
पड़ोसी :
नगरों में जबसे बसे, सबसे हैं अनजान!
मेरे कौन पड़ोस में, नहीं जरा भी ज्ञान!!
नहीं जरा भी ज्ञान,सुनो जी कलयुग आया !
भूले अपना कर्म, पड़ोसी धर्म भुलाया!!
कहे 'सुधा' सुन बात, शूल मिलते डगरों में!
रहे पड़ोसी पास , ध्यान रखिए नगरों में!!

28:
धागा :
धागे सबको जोड़ते, करें न फिर भी गर्व
सोहे भ्राता हाथ में, जब हो राखी पर्व ।
जब हो राखी पर्व, प्रेम आपस में बढ़ता।
बनता जब यह चीर, देह की शोभा बनता।।
कहे 'सुधा' सुन मित्र, द्वेष तब मन से भागे।
जुड़ते टूटे बंध, जगे हिय स्नेहिल धागे।।




21 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!!सुधा जी ,सुंदर कुंडलियाँ !

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  2. बहुत सुंदर सृजन सुधा जी , मनभावन कुण्डलियाँ सृजन।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (१९-०१ -२०२०) को "लोकगीत" (चर्चा अंक -३५८५) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  4. वाह सुधा मैम, पुरातन और नवीनता का संगम लिए अद्भुत रचना। समसामयिक

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  5. एक से बढ़कर एक लाज़बाब कुंडलियाँ ,सादर नमस्कार सुधा जी

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  6. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ।

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  7. बहुत सुन्दर सुधा जी !
    हम मूढ़-मति कुंडलियों की रचना करेंगे तो उनमें नेताओं की फुंफकार होगी या मजलूमों की किस्मत की मार होगी.
    आपकी कुंडलियों की जैसी कल्पना की उड़ान और जीवन की मुस्कान हम कहाँ से लाएंगे?

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  8. उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय 🙏

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