मंगलवार, 30 जुलाई 2019

कहाँ पाऊँ आपको..


कहाँ पाऊँ आपको, पापा...
किन राहों में आपकी तलाश करूँ
कुछ भी तो सूझता नहीं है अब
सब कुछ तो शून्य कर गये आप...

कहकर 'बहिनी' एक बार फिर से
मुझे पुकार लीजिये न पापा
कि आप के मुख से ये शब्द
सुनने को कान तरस रहे हैं..

लौट आइए पापा...
कि छलकने लगता है
वक़्त बेवक्त आँखों का समंदर
बिना आसपास देखे..
चहुँ दिश विकल हो खोजती हूंँ
मात्र आपको
कि कहीं तो आप दिख जाएँ
और झूठ हो जाए जीवन का
ये शाश्वत अकाट्य सत्य
और फिर से पा लूँ आपको...
नहीं मानता मन..
कि हर क्षण ही तो
महसूस होते हैं आप मुझे,
निगाहों से ओझल,
पर मेरे पास ही कहीं..

आपके जीवन में प्रवेश तो कर गई मैं
पर आपके लिये कहाँ कुछ कर पाई मैं ..
क्यों छोड़ गए मुझे कि
आपके अगाध स्नेह का
ऋण भी तो उतार न पाई मैं..

कैसी पुत्री हूँ मैं कि
जिसके जीवन को उजाले से
भर दिया आपने
हौसलों की उड़ान दी आपने
वह दूसरे के घर को कुलदीपक
देने के लिए आप से दूर हो गई.
समाज की यह कैसी रीति है
कि बेटियां बाबुल के पास रह नहीं पातीं

आपका कर्ज उतारना चाहती हूँ पापा
एक बार फिर से अपनी गोद का अलौकिक सुख दे दीजिए पापा
फिर से लौट आइए पापा🙏🙏🙏
फिर से लौट आइए.... 😔😔😔😔

रविवार, 30 जून 2019

हे शीर्षस्थ घर के मेरे...

Parivar, रिश्ते, लगाव
बिखरते रिश्ते 

हे शीर्षस्थ घर के मेरे
लखो तो 
टूट टूटकर सारे मोती
यहाँ वहाँ पर बिखर रहे 

कोई अपने रूप पर 
मर मिटा है स्वयं
किसी को हो गया 
परम ज्ञानी होने का भ्रम 
किसी को अकड़ है कि 
उसका रंग कितना खिला है 
किसी को बेमतलब का 
सबसे गिला है 

न जाने सबको कैसा 
कैसा दंभ हो गया है 
एकता के सूत्र को
हर कोई भूल गया है 
विस्मृत है सब कि छोटे 
बड़े सब मिलकर 
एक सुन्दर सा हार बने थे 
जो इस प्यारे से कुल का
प्यारा अलंकार बने थे 
खुशियों के दौर में 
हृदय से हृदय सटे थे
किन्तु आह्ह....
क्यों सद्यः वे अपने ध्वनि 
शरों से दूजे को वेधने डटे हैं 

न जाने उन्हें किस ठौर जाना है
क्या अभिलाषा है, उन्हें क्या पाना है 
अंत में जब सब-कुछ ,यहीं छोड़ जाना है
फिर क्यों किसी से शत्रुता ,क्यों बैर बढ़ाना है 

लखो तो...
हे शीर्षस्थ घर के मेरे
फिर से आखिरी प्रयास करो ...

रेशमी लगाव में एक बार फिर से उन्हें गुंफों..
आशाओं की डोरी से कसकर बांधो..
कभी पृथक न हो इतनी सुदृढ हो गांठें 
माला का विन्यास लावण्य मनोहारी हो यों 
कि वे अपने नवरूप पर लालायित हो उठें
लखो तो.. 
एक बार लखो तो... 
हे शीर्षस्थ घर के मेरे







शनिवार, 29 जून 2019

तलब...

ख्वाहिशें, khwahish
तलब

सितारों के आगे जहाँ खोजता हूँ ।
मैं धरती पर अपना मकां खोजता हूँ।। 

वो गुम है, मैं जिसका तलबगार हूँ ।
मैं हर शय में अपना खुदा खोजता हूँ ।। 

यूँ तो मुझमें ही खुशबू समाई है उनकी। 

मैं मानिंद-ए-ग़ज़ाल कस्तूरियां खोजता हूँ ।। 

दर्द किस्मत में मेरी कितना लिखा है ।
मैं उस दर्द की इन्तेहाँ खोजता हूँ ।। 

नाउम्मीदी ने इश्क में लताड़ा बहुत है। 

फिर भी उम्मीदों का आसरा खोजता हूँ।। 

जाम- ए - मोहब्बत में तिरता रहूं मैं ।
ऐ साकी मेरे मयकदा खोजता हूँ।। 

उल्फत की बातें पुरानी हुई अब ।
इश्क में फिर भी मैं तो, वफ़ा खोजता हूँ।। 




बुधवार, 26 जून 2019

बरखा रानी....

Varsha, barkha
Barish 

अमृत बनकर फिर से बरसो 
झम- झम बरसो बरखा रानी।
अपना रूप मनोहर लेकर 
और सुघड़ बन जाओ रानी ।। 

बरसो तन पर, मन पर बरसो  
खेतों - खलिहानों में बरसो।
ताल - तलैया छूट न जाए 
बियाबान सरसाओ रानी।।

सौंधी माटी फिर महकाओ
रिमझिम बूँदों से नहलाओ। 
पय सम बारिश के कतरों से 
कंठों को सहलाओ रानी।। 

जीवजगत भया मरणासन्न 
तुम बिन नहीं खाद्य उत्पन्न। 
जीवन की दाता हो तुम ही
रुठ न हमसे जाओ रानी।।

हम सम नासमझों से तुम 
क्रुद्ध कभी न होना रानी। 
वसुधा की श्यामलता तुम हो 
सुख समृद्धि लाओ रानी।। 

Varsha, barkha
Barish 

सोमवार, 10 जून 2019

बरस जा ऐ बदरी...

बरस जा ऐ बदरी..


तेरे आने से
इस दरख्त को भी
जीने की आस जगी है।
बरस जा ऐ बदरी
फिर से अनंत प्यास जगी है।।

पपीहा बन तेरी बूंद को तरसता रहा है।
बेरुखी तेरी पल - पल ये सहता रहा है।।
बनके परदेसी तू तो भटकती रही है।
बेवफा हर जगह तू बरसती रही है।।

तेरी उम्मीद में, ये तो ठूँठ हो गया।
भूला हरियाली, चिर नींद में सो गया।।
इसे सदियों से बस तेरा इंतजार था।
सोच माजी इसका कितना खुशहाल था।।

परिंदों का ये आसरा था बना।
मुसाफिरों को देता रहा है पना(ह)।।
कभी इस पर बहारों ने अंगड़ाई ली।
कभी इसने हवाओं से सरगोशी की।

ठूंठ बनकर के आज, ये पड़ा है यहाँ।
 है चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।।
बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता।
बरस जा ऐ बदरी.......