शनिवार, 6 अप्रैल 2019

सिग्नल गाथा



1:
गुटखा चबाकर
मुँह से पीक
गिराती हुई
मैले वसनों में
उस हृष्ट - पुष्ट
स्थूल काय
स्याह वर्ण
परपोषित
पैंतीस छत्तीस
वयीन
परोपजीवी
वयस्का को
मस्तक उठाकर
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?

2:
आने - जाने वाले
सभी लोगों के
सिरों पर हाथ
रखकर आशीर्वचन
बोलते हुए
दो - चार रुपयों के लिए
दुपहिया, तिपहिया,
चार चक्केवालों के
आगे अकिंचन से
हाथ बढ़ाते हुए
जोर की करतल ध्वनि
करनेवाले
कुछ सच के
और कुछ वेशधारी
किन्नरों को 
सबके बिगड़े
हुए मुँह देखकर,
कुछ अपशब्दों
की बौछार में
नहाकर भी
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?




नयन पाश


खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।

इन निगाहों ने ऐसा असर कर दिया
न मैं जिंदा रहा, और न मर ही सका।
है प्रशांत सबसे गहरा, या चितवन तेरे
डूबा मैं जब से इनमें, उबर न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह...

व्योम नीला अधिक है, या दृग हैं तेरे
आज तक और अभी तक, न तय कर सका।
आया हूँ जब से , मतवारे नयनन के द्वार
खोया खुद को , अभी तक मैं पा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह.....

मैं यायावर अहर्निश,  तेरी अभिलाषा में
रह गया प्यासा, मरु- सर को पा न सका।
है ये कैसी कशिश, कैसा अहसास है,
है पारावार किंतु, तृष्णा मिटा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका ।










शनिवार, 30 मार्च 2019

ग़रीबी - प्रश्न चिह्न

गरीबी- प्रश्नचिह्न

तरसते दो जून
की रोटी को
धन और साधन की
कमी से जूझते
मैले- कुचैले
चीथड़ों में
जीवन के
अनमोल स्वप्न सजाते
सूखे शरीर से चिपके
नवजात को
अपने आँचल का
अमृत - धार
न पिला पाने की
विवशता में
मन ही मन घुटते
तंगी में रह रहकर
जीवन यापन
करने को मजबूर
फटे लत्ते को भी
भीख में
मांगने वालों में
जिजीविषा???
बहुत बड़ा प्रश्न!!!!

सुधा सिंह 👩‍💻




रविवार, 24 मार्च 2019

कलम बीमार है..




न उठना चाहती है,
न चलना चाहती है.
स्वयं में सिमट कर
रह गई मेरी कलम
आजकल बीमार रहती है.

आक्रोशित हो जब लिखती है अपने मन की
तो चमकती है तेज़ टहकार- सी.
चौंधिया देने वाली उस रोशनी से,
स्याह आवरण के घेरे में,
स्वयं को सदा महफूज समझते आये वे,
असहज हो कोई इन्द्रजाल रच,
करते हैं तांडव उसके गिर्द .
किंकर्तव्यविमूढ़ वह
नहीं समझ पाती, करे क्या?

समाज से गुम हुई सम्वेदनाओं
को तलाशते- तलाशते
शिथिल, क्लांत - सी
दुबक गई है किसी कोने में.
उसके भीतर भरे प्रेम का इत्र
भी हवा में ही लुप्त है कहीं.
मन की भावनाएँ जाहिर करने की
उसकी हर इच्छा मृतप्राय हो चली है.

उसे इंतजार है तो बस
उन गुम सम्वेदनाओं का .
उनके मसीहाओं का .
जो इंसान को खोजते हुए
धरती से दूर निकल गए हैं.

सुधा सिंह 👩‍💻✒️





शनिवार, 9 मार्च 2019

8 मार्च

      8 मार्च

8 मार्च ये कोई तारीख है
या स्त्री के जख्मों पर
साल दर साल बड़े प्रेम से
छिड़का जाने वाला नमक..
ये 8 मार्च आखिर आता क्यों है
और आता भी है तो चुपचाप
चला क्यों नहीं जाता
क्यों स्त्री को
एहसास दिलाया जाता है
कि तुम्हारे बिना
यह सृष्टि चल ही नहीं सकती
तुम ही सब कुछ हो
तुम माँ दुर्गा, तुम ही काली हो
तुम आदि लक्ष्मी , तुम शक्तिशाली हो
तुम तनया, तुम भगिनी हो
तुम माता, तुम जीवन संगिनी हो

शायद इस दिन किसी स्त्री पर
कोई अत्याचार नहीं होता
शायद इस दिन उसकी अस्मत
बिलकुल सुरक्षित होती है
कदाचित् इस दिन कोई बेटी
कोख में नहीं मारी जाती
कदाचित् इस दिन कोई बहू
रसोई घर में गैस सिलिंडर
की भेंट नहीं चढ़ती.

जिस दिन 'शायद
और कदाचित्' यथार्थ
रूप ले लेंगे
उस दिन से सचमुच
मेरे लिए हर दिन
8 मार्च होगा.