गुटखा चबाकर
मुँह से पीक
गिराती हुई
मैले वसनों में
उस हृष्ट - पुष्ट
स्थूल काय
स्याह वर्ण
परपोषित
पैंतीस छत्तीस
वयीन
परोपजीवी
वयस्का को
मस्तक उठाकर
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?
2:
आने - जाने वाले
सभी लोगों के
सिरों पर हाथ
रखकर आशीर्वचन
बोलते हुए
दो - चार रुपयों के लिए
दुपहिया, तिपहिया,
चार चक्केवालों के
आगे अकिंचन से
हाथ बढ़ाते हुए
जोर की करतल ध्वनि
करनेवाले
कुछ सच के
और कुछ वेशधारी
किन्नरों को
सबके बिगड़े
हुए मुँह देखकर,
कुछ अपशब्दों
की बौछार में
नहाकर भी
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?
अमित जी सहमत हूँ आपसे. 🙏 बिलकुल सत्य कहा आपने
जवाब देंहटाएंसुअवलोकन जन्य सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 🙏 🙏. स्वागत है आपका
जवाब देंहटाएंकिन्नरों की सामाजिक स्थिति व उनका आचरण वस्तुतः समाज के लिए एक चिन्ता का विषय है।
जवाब देंहटाएंप्रशासन भी उनके विरूद्ध कदम उठाने से हिचकती है।
जटिल प्रश्न उठाया है आपने।
प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया Pk भाई 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंचिन्ता का विषय है
जवाब देंहटाएंजी संजय जी. शुक्रिया 🙏
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