शनिवार, 6 अप्रैल 2019

सिग्नल गाथा



1:
गुटखा चबाकर
मुँह से पीक
गिराती हुई
मैले वसनों में
उस हृष्ट - पुष्ट
स्थूल काय
स्याह वर्ण
परपोषित
पैंतीस छत्तीस
वयीन
परोपजीवी
वयस्का को
मस्तक उठाकर
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?

2:
आने - जाने वाले
सभी लोगों के
सिरों पर हाथ
रखकर आशीर्वचन
बोलते हुए
दो - चार रुपयों के लिए
दुपहिया, तिपहिया,
चार चक्केवालों के
आगे अकिंचन से
हाथ बढ़ाते हुए
जोर की करतल ध्वनि
करनेवाले
कुछ सच के
और कुछ वेशधारी
किन्नरों को 
सबके बिगड़े
हुए मुँह देखकर,
कुछ अपशब्दों
की बौछार में
नहाकर भी
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?




8 टिप्‍पणियां:

  1. किन्नरों को
    सबके बिगड़े
    हुए मुँह देखकर,
    कुछ अपशब्दों
    की बौछार में
    नहाकर भी
    भीख मांगना
    ही क्यों
    आसान लगता है?
    ..बहुत बढ़िया मैम
    . अगर सामने वाला थोड़ा भी कमजोर पड़ा तो यही लोग ख़ुद ही अपशब्दों की बारिश शुरू कर देते हैं।

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    उत्तर
    1. अमित जी सहमत हूँ आपसे. 🙏 बिलकुल सत्य कहा आपने

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  2. सुअवलोकन जन्य सुंदर रचना

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 🙏 🙏. स्वागत है आपका

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  4. किन्नरों की सामाजिक स्थिति व उनका आचरण वस्तुतः समाज के लिए एक चिन्ता का विषय है।
    प्रशासन भी उनके विरूद्ध कदम उठाने से हिचकती है।
    जटिल प्रश्न उठाया है आपने।

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  5. प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत शुक्रिया Pk भाई 🙏 🙏

    जवाब देंहटाएं

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