गरीबी- प्रश्नचिह्न
तरसते दो जून
की रोटी को
धन और साधन की
कमी से जूझते
मैले- कुचैले
चीथड़ों में
जीवन के
अनमोल स्वप्न सजाते
सूखे शरीर से चिपके
नवजात को
अपने आँचल का
अमृत - धार
न पिला पाने की
विवशता में
मन ही मन घुटते
तंगी में रह रहकर
जीवन यापन
करने को मजबूर
फटे लत्ते को भी
भीख में
मांगने वालों में
जिजीविषा???
बहुत बड़ा प्रश्न!!!!
सुधा सिंह 👩💻
तरसते दो जून
की रोटी को
धन और साधन की
कमी से जूझते
मैले- कुचैले
चीथड़ों में
जीवन के
अनमोल स्वप्न सजाते
सूखे शरीर से चिपके
नवजात को
अपने आँचल का
अमृत - धार
न पिला पाने की
विवशता में
मन ही मन घुटते
तंगी में रह रहकर
जीवन यापन
करने को मजबूर
फटे लत्ते को भी
भीख में
मांगने वालों में
जिजीविषा???
बहुत बड़ा प्रश्न!!!!
सुधा सिंह 👩💻
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-04-2019) को "वो फर्स्ट अप्रैल" (चर्चा अंक-3292) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏
हटाएंप्रश्न तो बड़ा है पर अगर ये न हो तो बाहर आना आसान नहीं होता ऐसी अवस्था से ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने आदरणीय. सादर 🙏
हटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ओंकार जी. सादर 🙏
हटाएंवाकई बड़ा प्रश्न
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 3 अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया पम्मी जी 🙏 🙏 🙏 सादर
हटाएंहृदय स्पर्शी रचना सुधा जी मार्मिक पर सत्य।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया कुसुम दी. आपकी प्रतिक्रिया मिली रचना सार्थक हो गई. 🙏 🙏 🙏 सादर
हटाएंहृदय तल से आभार सखी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...हृदयस्पर्शी रचना...।
जवाब देंहटाएंआभार सुधा जी 🙏 🙏
हटाएंजीवन के
जवाब देंहटाएंअनमोल स्वप्न सजाते
सूखे शरीर से चिपके
नवजात को
अपने आँचल का
अमृत - धार
आपने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपने इन भावों को प्रस्तुत किया हैं।
प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी 🙏 🙏
हटाएं