रविवार, 24 मार्च 2019

कलम बीमार है..




न उठना चाहती है,
न चलना चाहती है.
स्वयं में सिमट कर
रह गई मेरी कलम
आजकल बीमार रहती है.

आक्रोशित हो जब लिखती है अपने मन की
तो चमकती है तेज़ टहकार- सी.
चौंधिया देने वाली उस रोशनी से,
स्याह आवरण के घेरे में,
स्वयं को सदा महफूज समझते आये वे,
असहज हो कोई इन्द्रजाल रच,
करते हैं तांडव उसके गिर्द .
किंकर्तव्यविमूढ़ वह
नहीं समझ पाती, करे क्या?

समाज से गुम हुई सम्वेदनाओं
को तलाशते- तलाशते
शिथिल, क्लांत - सी
दुबक गई है किसी कोने में.
उसके भीतर भरे प्रेम का इत्र
भी हवा में ही लुप्त है कहीं.
मन की भावनाएँ जाहिर करने की
उसकी हर इच्छा मृतप्राय हो चली है.

उसे इंतजार है तो बस
उन गुम सम्वेदनाओं का .
उनके मसीहाओं का .
जो इंसान को खोजते हुए
धरती से दूर निकल गए हैं.

सुधा सिंह 👩‍💻✒️





14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 26 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. पांच लिंकों में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दी 🙏 🙏. सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-03-2019) को "कलम बीमार है" (चर्चा अंक-3286) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏 सादर

      हटाएं
  3. कलम जब चलती है तो मन के आवेग और भावों के धक्के से ही आगे बढती है ...
    अच्छी रचना है ...

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    उत्तर
    1. मनोबल बढ़ाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏 आदरणीय नासवा जी. सादर

      हटाएं
  4. मन की भावनाएँ जाहिर करने की
    उसकी हर इच्छा मृतप्राय हो चली है.
    समाज की संवेदनहीनता से दुखी कलम संवेदना लिखने से टलने लगी है।...बहुत ही सुन्दर...
    वाह!!!

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    उत्तर
    1. आपके विश्लेषण ने रचना को बल दे दिया सुधा जी. आपका बहुत बहुत आभार 🙏 🙏

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  5. वाहह्हह.. संवेदनशील मन की गहन अभिव्यक्ति वैचारिकी मंथन से उपजे भाव.प्रभावित कर रहे हैं दी.👌👌👌

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    1. प्रतिक्रिया पाकर हृदय तल से आभारी हूँ श्वेता ❤️ 😘

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  6. समाज से गुम हुई संवेदनाओं को तलाशते -तलाशते शिथिल कलांत सी दुबक गई है किसी कोने में उसके भीतर भरे प्रेम का इत्र भी हवा में ही लुप्त है कहीं .… सुंदर सृजन

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