पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।
इन निगाहों ने ऐसा असर कर दिया
न मैं जिंदा रहा, और न मर ही सका।
है प्रशांत सबसे गहरा, या चितवन तेरे
डूबा मैं जब से इनमें, उबर न सका।
खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह...
व्योम नीला अधिक है, या दृग हैं तेरे
आज तक और अभी तक, न तय कर सका।
आया हूँ जब से , मतवारे नयनन के द्वार
खोया खुद को , अभी तक मैं पा न सका।
खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह.....
मैं यायावर अहर्निश, तेरी अभिलाषा में
रह गया प्यासा, मरु- सर को पा न सका।
है ये कैसी कशिश, कैसा अहसास है,
है पारावार किंतु, तृष्णा मिटा न सका।
खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका ।
वाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरणीया
बहुत बहुत शुक्रिया रवींद्र जी 🙏 🙏
हटाएंवाहह्हह... मस्त...बहुत सुंदर लिखा आपने दी👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंलूट लेती हो मुझे अपने शब्दों से प्यारी श्वेता ❤️
हटाएंवाह!!!बहुत सुंदर!!👍
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ शुभा जी 🙏 🙏 🙏
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब...
बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏 🙏
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 🙏 🙏
हटाएंआभारी हूँ अभिलाषा जी 🙏 🙏 🙏
जवाब देंहटाएंवाह ! लेखन में चित्रकला सी सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया मीना जी 🙏 🙏
हटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना सुधा जी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अनुराधा जी 🙏 🙏 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ सखी 🙏 🙏 🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता, बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏 🙏
हटाएंबेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सखी 🙏
हटाएंखिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
जवाब देंहटाएंपाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।
वाह कजरारे नैनो के सम्मोहन पर स्नेहिल उदगार !!!बहुत सुंदर सृजन प्रिय सुधा जी | सस्नेह --
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया ने मुझे खूब हौंसला दिया है. हृदय तल से आपका आभार 🙏 🙏 🙏
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