शनिवार, 9 मार्च 2019

8 मार्च

      8 मार्च

8 मार्च ये कोई तारीख है
या स्त्री के जख्मों पर
साल दर साल बड़े प्रेम से
छिड़का जाने वाला नमक..
ये 8 मार्च आखिर आता क्यों है
और आता भी है तो चुपचाप
चला क्यों नहीं जाता
क्यों स्त्री को
एहसास दिलाया जाता है
कि तुम्हारे बिना
यह सृष्टि चल ही नहीं सकती
तुम ही सब कुछ हो
तुम माँ दुर्गा, तुम ही काली हो
तुम आदि लक्ष्मी , तुम शक्तिशाली हो
तुम तनया, तुम भगिनी हो
तुम माता, तुम जीवन संगिनी हो

शायद इस दिन किसी स्त्री पर
कोई अत्याचार नहीं होता
शायद इस दिन उसकी अस्मत
बिलकुल सुरक्षित होती है
कदाचित् इस दिन कोई बेटी
कोख में नहीं मारी जाती
कदाचित् इस दिन कोई बहू
रसोई घर में गैस सिलिंडर
की भेंट नहीं चढ़ती.

जिस दिन 'शायद
और कदाचित्' यथार्थ
रूप ले लेंगे
उस दिन से सचमुच
मेरे लिए हर दिन
8 मार्च होगा.

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-03-2019) को "लोकसभा के चुनाव घोषि‍त हो गए " (चर्चा अंक-3270) (चर्चा अंक-3264) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब ,सच्ची बात तो यही हैं कि अभी 8 मार्च आया ही नहीं हैं ,बेहतरीन रचना

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  3. आपका कहना सच है ... एक दिन याद कराना कई बार रस्म निभाना भी होता है ... फिर उसी ढर्रे पे लौटने के लिए ...

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  4. आग्नेय प्रश्न है ये।
    सच कहूं तो मुझे सब ढकोसला लगता है सारी कायनात मिल कर एक बदरंग फिजा में फूल खिलाने बैठती है।
    हमारे देशमें तो 50 प्रतिशत औरते जानती भी नही की कि ये है क्या आखिर, श्रमिक वर्ग की कुछ औरतें कहती है औरत का दिन कौनसी औरत का दिन है आज, कौन औरत मरी थी इस दिन, हम तो गमी हो जाने वालो का दिन मनाना याने बरसी या श्राद्ध।
    एक दिन की खैरख्वाही वो भी बस दिखती है आभिजात्य वर्ग मे मिडिया मे व्हाट्सेप पर या सारी सोशल नेटवर्किंग साइट पर ।
    सार्थक सृजन आपका।

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