गुरुवार, 14 मई 2020

बोल चिड़िया



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बोल चिड़िया,
अब बेधड़क बोल।
अब तेरी बारी आई है।
दिल के सारे जख्म खोल।

बोल चिड़िया,अब बेधड़क बोल।

तुझे पिंजरे में बंद करनेवाला 
अब बचा कौन है!!!!
तेरी स्वर लहरियों को रोकने वाला 
तो अब स्वयं ही मौन है!!

अब जी भरकर चहक।
सकल विश्व पर ,अब तेरा ही प्रभुत्व है...
जहाँ चाहे, वहाँ फुदक।।

मेरी भोली चिड़िया,तेरी चीत्कारों
का हिसाब इतना ज्यादा है 
कि प्रकृति अब अहमी मनुष्य को रक्तिम 
अश्रुओं का स्वाद चखाने पर आमादा है               
मन में अब कोई भय न रख,
तू निडर होकर बहक।
अब तू आज़ाद है ,
तुझे कैद करनेवाला बर्बाद है।।

हे चिड़िया, मुक्त कंठ से,  
प्रकृति का धन्यवाद कर।
अपने कलरव -किलोल से 
फिर मेरा जहाँ आबाद कर।।

नदिया, झरने, 
पहाड़ों ,झुरमुटों से निकल 
अब बस्तियों में भी बोल

मेरे कानों में फिर से 
अपना मधु रस घोल 
अब ख़ुश होकर बोल

चिड़िया ,अब खुश होकर बोल।

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रविवार, 10 मई 2020

तक़सीर...







*अना-परस्त हैं वो, और *ज़बत उन्हें आती नहीं
*फना हुए उनकी नादानियों पे हम, पर वो रस्में वफा निभाती नहीं ।1।

अदाएँ दिखाकर लूटना तो *शगल है उनका और
 हम लुट गए उन अदाओं पे, वो समझ पाती नहीं ।2।

क्यों अब तलक वो करती रही , *पैमाइश मेरी
हम कोई *शय नहीं ,क्या उसे समझ आती नहीं।3।

जाके कह दो कोई  ,कि मोहब्बत है उनसे
बिन उनके सर्द रातें भी ,अब सुहाती नहीं ।4।

क्या उनकी आरजू करना, *तकसीर है मेरी
क्यों हमें अपना जलवा, वो दिखाती नहीं।5।



उर्दू-हिंदी:

1:अना-An inflated feeling of pride in your superiority to others.,अहंकार
(अना परस्त-egoistic)
2:ज़बत-सहनशीलता
3:फ़ना- कुर्बान
4:शगल- शौक़
5: पैमाइश-नापने या मापने की क्रिया
6:शय- वस्तु, object
7:तकसीर-अपराध, गलती







शनिवार, 9 मई 2020

जिजीविषा

 

गिरी थी, संभली थी,उठी थी ,चली थी।
चुभे थे कंकड़, और ठोकरें लगी थी।1।

शिथिल क्लांत सी, एकाकी डगर पर।
सुरसाओं से, मेरी जंगें छिड़ी थी।2।

आँखें की कोरों का सैलाब था शुष्क ।
फिर भी अकेले ही मैं चल पड़ी थी।3।

जिजीविषा कभी छोड़ी गई ना।
विधाता की लेखनी से मेरी ठनी थी।4।

कर्म पथ पर ही थी निगाहें मेरी ।
मंजिल ही एक ध्येय, मेरी बनी थी।5।

बड़ी हसरतों से, पुकारा जो उनको ।
चीत्कारों की मेरी,अनुगूंज लौटी थी ।6।

छेड़ा फिर एक युद्ध, नियति से मैंने।
कभी ऊपर थी वो,और मैं नीचे पड़ी थी।7।

हूँ मनु सुता, मैं अपराजित सदा थी।
ललकारा था मैंने ,और तनकर खड़ी थी।8।

जोश था उर मेें मेरे, नतमस्तक हुई वो।
हार थी उसने मानी,मेरे जय की घड़ी थी।9।













शुक्रवार, 8 मई 2020

संबंधों के बंध न छूटें...


गीत/नवगीत ::संबंधों  के  बंध न छूटें
मुखड़ा:16,16
अंतरा:16,14
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संबंधों  के  बंध न छूटें ,
    आओ कुछ पल संवाद करें ।
माँ धरा को प्रेम से भर दें ,
      हर हृदय को आबाद करें ।।
                     1
 इर्ष्या की आँधी ने देखो
              सब पर घेरे डाले हैं ।
नहीं जुझारू डरे कभी भी
            वो तो हिम्मत वाले हैं।।
नफरत की आँधी रुक जाए
       आओ कुछ ऐसा नाद करें ।
                     2
लोभ मोह अरु मद मत्सर का
              जग सारा ही चेरा है।
असमंजस में रहे अहर्निश
                करता तेरा मेरा है।।
प्रेम सरित की धार बन बहें
        उर में इतना आल्हाद भरें ।
                       3
दीन -दुखी का बनें सहारा
           कर्तव्यों का भान करें।
तिरस्कार का शूल चुभे ना
         हर प्राणी का मान करें । ।
संतुष्टि की पौध को रोपें,
       अब कोई ना उन्माद करे।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

बुधवार, 6 मई 2020

देखा है मैंने ...


देखा है मैंने
मजदूरों को
दिन भर
कड़ी धूप में
खटते हुए।
ईंट- गारा रेती-सीमेंट
के घमेले को सिर पर
उठाकर इमारतें बनाते हुए।
आँधी - तूफ़ान में झम -झम
बरसते हुए खुले आकाश
के नीचे पन्नी से ढकी
बोझिल हाथगाडी को
पूरी ताकत से खींचते हुए ,
हाँफते हुए।

देखा है मैंने
मजदूरों को
गंदे शहरी नाले में उतरकर
लोगों का मल साफ़ करते हुए।
नालों से उत्सर्जित
ज़हरीली गैसों से
जूझते हुए और
नाक मुँह को ओकाई आते
काले- पीले- हरे
बदबूदार मल प्रवेश से
खुद को बचाते हुए।

किंतु फिर....
देखा है मैंने
मजदूरों को

थके हारे मित्रों के संग
टोली बनाकर
किसी छांव में
बीड़ी फूँकते हुए,
तंबाकू चूने को
हथेलियों पर मलते हुए।
और शाम होते ही देशी ठेके पर
दिहाड़ी की रकम उड़ाकर
आधी रात को पत्नी
बच्चों को पीटते हुए।

फिर, देखा है मैंने
मजदूरों को
पत्नी की कमाई
बच्चों की स्कूल फीस को
शराब चखने में उड़ाते हुए
उनके परिजनों को
अन्न के एक- एक दाने
के लिए मोहताज
करते हुए

देखा है मैंने
मजदूरों को
नशे में बेहोश
किसी गंदे नाले के
किनारे फटे चीथड़ों में पड़े हुए।
कल की चिंता न करके
गरीबी मुफलिसी में मरते हुए।

देखा है मैंने.....