बुधवार, 6 मई 2020

देखा है मैंने ...


देखा है मैंने
मजदूरों को
दिन भर
कड़ी धूप में
खटते हुए।
ईंट- गारा रेती-सीमेंट
के घमेले को सिर पर
उठाकर इमारतें बनाते हुए।
आँधी - तूफ़ान में झम -झम
बरसते हुए खुले आकाश
के नीचे पन्नी से ढकी
बोझिल हाथगाडी को
पूरी ताकत से खींचते हुए ,
हाँफते हुए।

देखा है मैंने
मजदूरों को
गंदे शहरी नाले में उतरकर
लोगों का मल साफ़ करते हुए।
नालों से उत्सर्जित
ज़हरीली गैसों से
जूझते हुए और
नाक मुँह को ओकाई आते
काले- पीले- हरे
बदबूदार मल प्रवेश से
खुद को बचाते हुए।

किंतु फिर....
देखा है मैंने
मजदूरों को

थके हारे मित्रों के संग
टोली बनाकर
किसी छांव में
बीड़ी फूँकते हुए,
तंबाकू चूने को
हथेलियों पर मलते हुए।
और शाम होते ही देशी ठेके पर
दिहाड़ी की रकम उड़ाकर
आधी रात को पत्नी
बच्चों को पीटते हुए।

फिर, देखा है मैंने
मजदूरों को
पत्नी की कमाई
बच्चों की स्कूल फीस को
शराब चखने में उड़ाते हुए
उनके परिजनों को
अन्न के एक- एक दाने
के लिए मोहताज
करते हुए

देखा है मैंने
मजदूरों को
नशे में बेहोश
किसी गंदे नाले के
किनारे फटे चीथड़ों में पड़े हुए।
कल की चिंता न करके
गरीबी मुफलिसी में मरते हुए।

देखा है मैंने.....





नागफ़नी

नागफ़नी!!!
सरल नहीं है तुमसे प्यार करना,
कुपोषित ,बंजर ,
ऊसर जमीन की उत्पन्न तुम
और तुम्हारी उत्पन्न भी
खुरदुरी, काँटोभरी।

फूल एकाध उग आते हैं
यदा -कदा तुम पर भी।
शायद यही वह क्षण होता है...
जब तुम में संचार होता है
स्नेही स्निग्धता का,
और तुम कुछ क्षणों के लिए
आकर्षित करते हो सबको।

किंतु फिर आते ही क़रीब
चुभ जाते हो शूल बन हथेलियों में
कर देते हो छलनी
दिल का हर कोना।
छोड़ देते हो
भद्दा- सा एक निशान,
दामन को पल -पल
आँसुओं से भिगोते हुए,
दूर कर देते हो स्वयं को
उनसे ,जो तुम्हें ,
अपने जीवन का
अंग मानने लगे थे।

मेरे नागफ़नी !!
क्या तुम भी
अनुराग के बदले अनुराग
नहीं दे सकते??

रविवार, 3 मई 2020

मजदूरनी

विधा~मनहरण घनाक्षरी
विषय~चित्र चिंतन
शीर्षक~मजदूरनी

मेहनत मजदूरी, 
भाग्य लिखी मज़बूरी।
रात दिन खट के भी, 
मान नहीं पाती है।1।

सिर पर छत नहीं,
बीते रात दिन कहीं।
ईंट गारा ढोती घर, 
दूजे का बनाती है।2।


हौंसले की लिए ढाल,
अँचरा में बाँधे लाल।
फांके करती है कभी, 
रूखा सूखा खाती है।3।


तकदीर की है मारी,
खाए पति की भी गारी।
दुख दर्द सहके भी,
फ़र्ज वो निभाती है ।4।

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

दोहे:6



31:ईश्वर:
शुक्ति मध्ये मोती ज्यों, मन माही त्यों राम।
अपने हिय को शोध ले, वही ईश का धाम।।
♦️♦️♦️♦️

32:प्रकृति:
वन उपवन उजाड़ भए,नहीं पथिक को छाँह ।
बिगड़ी सूरत प्रकृति की ,  हमें कहाँ परवाह।।
♦️♦️♦️♦️

33:नैतिकता:
छल बल से कम्पित धरा,भरे मनुजता आह।
निज हित में अंधा मनुज,भूला नैतिक राह।।
♦️♦️♦️♦️

34:छल-कपट:
छल कपट अरु प्रवंचना,  हुई धरा पर व्याप्त ।
हे प्रभु फिर अवतार लो,इनको करो  समाप्त ।।
♦️♦️♦️♦️

35:समय:
गति समय की रुके नहीं, समय बड़ा बलवान।
सबक समय से सीख कुछ,ठहरा क्यों नादान।।
♦️♦️♦️♦️

36:परिवर्तन:
परिवर्तन शाश्वत नियम ,विधि का यही विधान ।
अड़े रहे जो लीक पर ,  वो विस्मृत अनजान ।।
♦️♦️♦️♦️

37:काल:
धीमी की गति काल ने,तू भी थम जा यार।
होड़ काल से क्यों करे,काल बल है अपार।।
♦️♦️♦️♦️

38:धर्म:
धर्म संस्कृति पोषण हित , रुके समय की चाल।
धर्म विरोधी जो बना,     गया काल के गाल।।
♦️♦️♦️♦️

39: संगीत
अनुरागी हिय भाव ही , रचते जीवन गीत।
तज दें कलुषित भाव तो, बज उठता संगीत।।
♦️♦️♦️♦️

40:कर्म
 पश्चाताप न हो कभी, कर ले ऐसे कर्म।
आज किया कल भोगना, जीवन का है मर्म।
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41: वीर 
एक *मनोरथ* है यही, देश रहे खुशहाल।
 बच्चा बच्चा वीर हो, बने देश की ढाल।।
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42: लगन 
कार्य करें जो लगन से , सुगम बने तब राह।
बनें विशारद बुद्धि से , मन में रखें न डाह।।

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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

दाग कोरोना काल का..

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# दाग कोरोना काल का

किसी ने कहा था कि
दाग अच्छे हैं!!!
हाँ दाग अच्छे  हैं...
पर तब तक
कि जब तक
जड़ न हो जाएँ..
हमेशा के लिए
किसी रंग को,
बदरंग न कर जाएँ...
किसी के जीवन में
झंझा न भर जाएँ
किन्तु जीव की जीवटता
के आगे किसी का
अस्तित्व कहाँ टीक सका है!!
यह तो अनवरत
प्राकृतिक प्रक्रिया है
इसे चलना है...
जो आया है, उसे जाना है।
ये लिजलिजाता, बदनुमा, भद्दा दाग
जो अद्य सबको अपने पंजों में
जकड़ने को आतुर है
व‍ह भी कब तक
किसी को छका पाएगा
उसे भी तो
जाना ही पड़ेगा।
बस इंतजार है..
तो उस 'सर्फ एक्सेल' का
जो पड़ोसी के दिए
इस भद्दे, विद्रूप दाग का
चिर नाश करेगा
और हम फिर से
आजादी की हवा में
मुक्त साँस ले सकेंगे..

बिना य़ह भूले कि,
"कुछ पड़ोसियों के दाग,
बिलकुल भी अच्छे नहीं होते। "

~सुधा सिंह 'व्याघ्र'