सुधा की कुंडलियाँ |
21:बिंदी::
जगमग भाल चमक रहा, टीका बिंदी संग।
मीरा जोगन हो गई, चढ़ा कृष्ण का रंग।।
चढ़ा कृष्ण का रंग , कृष्ण है सबसे प्यारा।
छान रही वनखंड,लिए घूमे इकतारा ।।
छोड़ा है रनिवास,बसा कर कान्हा रग रग।
तुम्बी सोहे हस्त ,भाल टीके से जगमग।।
22:डोली::
डोली बैठी नायिका, पहन वधू का वेश।
कई स्वप्न मन में लिए,चली पिया के देस।।
चली पिया के देस,भटू अब नैहर छूटा।
माँ बाबा से दूर, सखी से नाता टूटा।।
जाने कैसी रीत, सुबक दुल्हनिया बोली।
लगी सजन से लगन,स्वप्न बुन बैठी डोली।।
23:जीवन ::
मानव योनि जन्म मिला,कर इसका उपयोग।
जीवन व्यर्थ न कीजिये, कर लीजे कुछ योग।।
कर लीजे कुछ योग,आज मानवता रोती।
हिंसा करती राज,बीज नफरत के बोती।।
सुधा विचारे आज, बना मनुष्य क्यों दानव।
जिंदगी हो न व्यर्थ,तुष्ट हो मन से मानव।।
24:उपवन::
माता जैसे पालती, खून से प्यारे लाल।
माली उपवन सींचता , नियमित रखता ख्याल।।
नियमित रखता ख्याल, फूल डाली पर खिलते।
चुनता खर पतवार, हस्त कंटक से छिलते।।
कहे सुधा सुन आज, बाग माली का नाता।
माली उपवन संग,यथा बालक अरु माता।।
25:कविता::
कविता मन की संगिनी, कविता रस की खान ।
कवि की है ये कल्पना, जिसमें कवि की जान ।।
जिसमें कवि की जान,स्नेह के धागे बुनता।
आखर आखर जोड़,भाव उर के वह चुनता ।।
सुनो सुधा है काव्य ,तमस विलोपती सविता।
दग्ध हृदय उद्गार,सहचरी हिय की कविता।।
26:ममता::
ममता माया में मढ़ी,मानो माँ का मोल।
महिधर महिमा में झुके,महतारी अनमोल।।
महतारी अनमोल ,न माँ की करो अवज्ञा ।
रख लो माँ का मान,चला लो अपनी प्रज्ञा।।
सुनु सुधा समझावति, मात की समझो महता।
माँ सम महा न कोय,नहीं माता सी ममता।।