बुधवार, 24 अप्रैल 2019

तुम बिन....


तुम बिन .....


मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.

तड़पती हूँ मैं
तुम्हारी यादों की इन
जंजीरों से छूटने को. 
जैसे बिन जल
तड़पती हो मछली
इक इक साँस पाने को. 
ये टीस, यह वेदना 
चीरती है मेरे हृदय को. 
कर देती है मुझे प्राणविहीन
कि तुम बिन 
मेरा अस्तित्व है ही नहीं.


रविवार, 21 अप्रैल 2019

कीरचें...




वो समझ नहीं पाए, मैं समझाती रह गई।
उनके अहम में, मैं खुद को मिटाती रह गई।

उजाड़ी थी बागबां ने ही, बगिया हरी - भरी
गुलाब सी मैं, काँटों में छटपटाती रह गई।

महफिल ने यारों की, भेंट कर दी तन्हाइया
मैं तन्हाइयों में खुद से, बतलाती रह गई ।

मखमली सेज, तड़पती रही बेकस होकर
मोहब्बत रात भर तकिया भिगाती रह गई ।

दिल के जख्मों को भर न पाई 'सुधा'
अपनी पलकों से ही कीरचें उठाती रह गई ।

सुधा सिंह ✍️


शनिवार, 6 अप्रैल 2019

सिग्नल गाथा



1:
गुटखा चबाकर
मुँह से पीक
गिराती हुई
मैले वसनों में
उस हृष्ट - पुष्ट
स्थूल काय
स्याह वर्ण
परपोषित
पैंतीस छत्तीस
वयीन
परोपजीवी
वयस्का को
मस्तक उठाकर
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?

2:
आने - जाने वाले
सभी लोगों के
सिरों पर हाथ
रखकर आशीर्वचन
बोलते हुए
दो - चार रुपयों के लिए
दुपहिया, तिपहिया,
चार चक्केवालों के
आगे अकिंचन से
हाथ बढ़ाते हुए
जोर की करतल ध्वनि
करनेवाले
कुछ सच के
और कुछ वेशधारी
किन्नरों को 
सबके बिगड़े
हुए मुँह देखकर,
कुछ अपशब्दों
की बौछार में
नहाकर भी
भीख मांगना
ही क्यों
आसान लगता है?




नयन पाश


खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका।

इन निगाहों ने ऐसा असर कर दिया
न मैं जिंदा रहा, और न मर ही सका।
है प्रशांत सबसे गहरा, या चितवन तेरे
डूबा मैं जब से इनमें, उबर न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह...

व्योम नीला अधिक है, या दृग हैं तेरे
आज तक और अभी तक, न तय कर सका।
आया हूँ जब से , मतवारे नयनन के द्वार
खोया खुद को , अभी तक मैं पा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में अलि की तरह.....

मैं यायावर अहर्निश,  तेरी अभिलाषा में
रह गया प्यासा, मरु- सर को पा न सका।
है ये कैसी कशिश, कैसा अहसास है,
है पारावार किंतु, तृष्णा मिटा न सका।

खिंचा आया था पुष्प में, अलि की तरह
पाश में ऐसा जकड़ा, निकल न सका ।










शनिवार, 30 मार्च 2019

ग़रीबी - प्रश्न चिह्न

गरीबी- प्रश्नचिह्न

तरसते दो जून
की रोटी को
धन और साधन की
कमी से जूझते
मैले- कुचैले
चीथड़ों में
जीवन के
अनमोल स्वप्न सजाते
सूखे शरीर से चिपके
नवजात को
अपने आँचल का
अमृत - धार
न पिला पाने की
विवशता में
मन ही मन घुटते
तंगी में रह रहकर
जीवन यापन
करने को मजबूर
फटे लत्ते को भी
भीख में
मांगने वालों में
जिजीविषा???
बहुत बड़ा प्रश्न!!!!

सुधा सिंह 👩‍💻