बुधवार, 24 अप्रैल 2019

तुम बिन....


तुम बिन .....


मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.

तड़पती हूँ मैं
तुम्हारी यादों की इन
जंजीरों से छूटने को. 
जैसे बिन जल
तड़पती हो मछली
इक इक साँस पाने को. 
ये टीस, यह वेदना 
चीरती है मेरे हृदय को. 
कर देती है मुझे प्राणविहीन
कि तुम बिन 
मेरा अस्तित्व है ही नहीं.


13 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत शुक्रिया संजय जी. 🙏 🙏 सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को चयनित करने के लिए शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏 नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर ....लाजवाब रचना।

    जवाब देंहटाएं

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇