तुम बिन .....
मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.
तड़पती हूँ मैं
तुम्हारी यादों की इन
जंजीरों से छूटने को.
जैसे बिन जल
तड़पती हो मछली
इक इक साँस पाने को.
ये टीस, यह वेदना
चीरती है मेरे हृदय को.
कर देती है मुझे प्राणविहीन
कि तुम बिन
मेरा अस्तित्व है ही नहीं.
हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया संजय जी. 🙏 🙏 सादर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चयनित करने के लिए शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी 🙏 🙏 नमन
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत सुन्दर सखी
जवाब देंहटाएंसादर
आभार सखी 🙏 🙏 सादर नमन
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
शुक्रिया प्यारी श्वेता
हटाएंवाह बेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रिय अनुराधा जी 🙏🙏
हटाएंवाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंशुभा जी,बहुत बहुत शुक्रिया 🙏 🙏
हटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ....लाजवाब रचना।
बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏 🙏
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