वो संदली एहसास..
खुला
यादों का किवाड़,
और बिखर गई
हर्ष की अनगिन
स्मृतियाँ.
झिलमिलाती
रोशनी में नहाई
वो शुभ्र धवल यादें,
मेरे दामन से लिपट कर
करती रही किलोल.
रोमावलियों से उठती
रुमानी तरंगे और
मखमली एहसासों
के आलिंगन संग,
बह चली मैं भी
उस स्वप्निल लोक में,
जहाँ मैं थी, तुम थे
और था हमारे
रूहानी प्रेम का वो
संदली एहसास.
खड़े हो कर दहलीज पर,
जो गुदगुदा रहा था
हौले- हौले से मेरे मन को,
और मदमस्त थी मैं
तुम्हारे आगोश में आकर.
सुधा सिंह 📝
यादों का संदली एहसास!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जो गुदगुदा रहा था
हौले- हौले से मेरे मन को,
और मदमस्त थी मैं
तुम्हारे आगोश में आकर.
बहुत लाजवाब।
बहुत बहुत शुक्रिया सुधा जी 🙏 🙏 🙏 सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद. नमन 🙏 🙏 🙏
हटाएंअहसासो को बहुत ही संजीदगी से पिरोया है
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय संजय जी 🙏 🙏 🙏 सादर
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