रविवार, 18 सितंबर 2022

कहते थे पापा

कहते थे पापा,
" बेटी! तुम सबसे अलग हो! 
सब्र जितना है तुममें
किसी और में कहाँ! 
तुम सीता - सा सब्र रखती हो!! "

 बोल ये पिता के 
थे अपनी लाडली के लिए......... 
 या भविष्य की कोख में पल रहे
 अपनी बेटी के सीता बनने की
 वेदना से हुए पूर्व साक्षात्कार के थे।..... 

  क्या जाने व‍ह मासूम 
कि व‍ह सीता बनने की राह पर ही थी 
 पिता के ये मधुर शब्द भी तो 
पुरुष वादी सत्ता के ही परिचायक थे. 
किन्तु वे पिता थे
जो कभी गलत नहीं हो सकते।

जाने अनजाने 
पापा के कहे शब्दों को ही
 पत्थर की लकीर 
समझने वाली लड़की 
 सीता ही तो बनती है।
 पर सीता बनना आसान नहीं होता। 
 उसके भाग्य में वनवास जरूरी होता है। 
धोबी के तानों के लिए 
और रामराज्य स्थापना के लिए 
 सीता सा सब्र  जरूरी होता है।
 नियति को सीता का सुख कहाँ भाता है 
व‍ह हर सीता के भाग्य में 
केवल सब्र लिखती है।
 दुर्भाग्य लिखती है।
 वेदना लिखती है। 
 







गुरुवार, 6 जनवरी 2022

दीप मन का सदा जगमगाता रहे– गीत


दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

 रौशनी की जगह ,वो तिमिर दे गया
मन की आशाएँ ,इच्छाएं वो ले गया
अब हुआ है  सबेरा, जगो साथियों
गीत नव हर्ष का, दिल ये गाता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

आया दुख का समय भी निकल जाएगा
हार पौरुष से तेरे वो पछताएगा
छोड़ दो डर को साथी, बढ़ो हर कदम
खौफ का मन से कोई न नाता रहे।।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

फिसला है वक्त हाथों से माना मगर
कांटों से है भरी माना अपनी डगर
अपने विश्वास को डगमगाने न दो
यूं  हंसों जग चमन खिलखिलाता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे

आंसुओं से भरी माना हर शाम थी
हर खुशी तेरी कोविड के ही नाम थी
लड़ बुरे वक्त से तू खड़ा है हुआ
जीत हर बाजी तू मुस्कुराता रहे।

दीप मन का सदा जगमगाता रहे
डर करोना का दिल से भी जाता रहे।

सुधा सिंह ‘व्याघ्र’💗


मंगलवार, 22 जून 2021

संकट मोचक हे हनुमान (भजन)

 संकट मोचक हे हनुमान,

चहुँदिस पसरा है अज्ञान। 

कोरोना की मार पड़ी है 

उलझन में बिखरा इंसान।। 


आई विपदा हमें संभालो

इस संकट से प्रभु बचा लो। 

संजीवनी की आशा तुमसे 

शरण में अपनी लो भगवान।। 


काल नेमि का काल बने तुम 

कनक लंक को जार दिए तुम। 

भक्तों का तुम एक सहारा 

करो कृपा हे कृपा निधान।। 


राम तुम्हारे हृदय समाए 

महिमा तुम्हारी कही न जाए। 

अष्ट सिद्धियों के तुम स्वामी 

खुशियों  का दे दो वरदान।। 


सोमवार, 14 जून 2021

कर्ज़

 

मन हरण घनाक्षरी 

विषय :कर्ज़(11/10/2020) 

 

रूखा सूखा खाइए जी 

ठंडा पानी पीजिए जी 

दूजे से उधार किन्तु 

लेने नहीं जाइए 


रातों को न नींद आए 

दिन का भी चैन जाए 

भोगवादी धारणा को

चित्त से हटाइए 


जीना भी मुहाल होगा

दुख बेमिसाल होगा, 

धैर्य सुख का है मंत्र 

उसे अपनाइए 

 

श्रम से विकास होगा 

दीनता का नाश होगा 

श्रम से ही जीवन को

सफल बनाइए 


 सुधा सिंह व्याघ्र 














रविवार, 6 जून 2021

गरीब, गरीबी और उनका धाम

एक चौराहा, 

उसके जैसे कई चौराहे, 

सड़क के दोनों किनारों के 

फुटपाथों पर बनी नीली- पीली, 

हरी -काली पन्नियों वाली झुग्गियाँ, 

पोटली में लिपटे कुछ मलिन वस्त्र... 


झुग्गियों के पास ईंटों का 

अस्‍थायी चूल्हा.... 

यहाँ- वहाँ से एकत्रित की गई

टूटे फर्निचर की लकड़ियों से 

चूल्हे में धधकती आग, 

चूल्हे पर चढ़े टेढ़े - मेढ़े

कलुषित पतीले में पकता 

बकरे का माँस,  

ज्येष्ठ की तपती संध्या में 

पसीने से लथपथ चूल्हे के समक्ष बैठी 

सांवली-सी गर्भवती स्त्री की गोद में 

छाती से चिपटा एक दुधमुँहा बालक, 

रिफाइंड तेल के पाँच, दस, पंद्रह लीटर के 

पानी से भरे कैन,

कैन से गिलास में पानी उड़ेलने का 

असफल प्रयास करती पाँच छः वर्ष की

मटमैली फ्राक पहनी बालिका, 

दाल - भात से सना बालिका का मुख, 

पानी पीने को व्यग्र, 

बहती नाक और आँख से बहती अश्रु धारा से

भीगे साँवले कपोल, 


बगल ही बैठा खुद में निमग्न 

एक सांवला, छोटा कद पुरुष, 

उसकी बायीं कलाई में नीलाभ

रत्नजड़ित लटकती गिलेट की मोटी ज़ंजीर,

भूरे जले से केश, 

हरे रंग की अनेक छेदों वाली बनियान,

दो उंगलियों के बीच फँसी सिगरेट से निकलता धुआँ,

दूसरे हाथ में बियर की एक बोतल और  

सामने ही कटोरे में रखी कुछ भुनी मूँगफलियाँ, 


झुग्गी की दूसरी ओर पाँच छह हमउम्र दोस्तों में 

चलती ताश की बाजी,

नीचे बिछे कपडे पर लगातार गिरते और उठते रुपए, तमाशबीनों का शोर...

हवा में उड़ते बहते अपशब्द और निकृष्ट गालियाँ. 


एक ओर बहुधा लंबी कतारें लगवाकर 
नए - पुराने वस्त्र, दाल, चीनी, गुड़, 
केले, छाते का दान करने आई 
बड़ी-सी कारों से उतरते सभ्य, 
संभ्रांत, धनाढ्य दानवीर स्त्री-पुरुष , 
कहीं पुण्यार्जन की ललक, 
कहीं अधिकाधिक पाने की लालसा, 


उभरे पेट लिए सड़क पर घूमते अधनंगे बालक, 

फुटपाथ से सड़क तक अतिक्रमण, 

अवरुद्ध राहें, 

सड़क पर लगा लंबा जाम 

एक परिदृश्य आम, 

यही है गरीब, गरीबी और उनका धाम...