एक चौराहा,
उसके जैसे कई चौराहे,
सड़क के दोनों किनारों के
फुटपाथों पर बनी नीली- पीली,
हरी -काली पन्नियों वाली झुग्गियाँ,
पोटली में लिपटे कुछ मलिन वस्त्र...
झुग्गियों के पास ईंटों का
अस्थायी चूल्हा....
यहाँ- वहाँ से एकत्रित की गई
टूटे फर्निचर की लकड़ियों से
चूल्हे में धधकती आग,
चूल्हे पर चढ़े टेढ़े - मेढ़े
कलुषित पतीले में पकता
बकरे का माँस,
ज्येष्ठ की तपती संध्या में
पसीने से लथपथ चूल्हे के समक्ष बैठी
सांवली-सी गर्भवती स्त्री की गोद में
छाती से चिपटा एक दुधमुँहा बालक,
रिफाइंड तेल के पाँच, दस, पंद्रह लीटर के
पानी से भरे कैन,
कैन से गिलास में पानी उड़ेलने का
असफल प्रयास करती पाँच छः वर्ष की
मटमैली फ्राक पहनी बालिका,
दाल - भात से सना बालिका का मुख,
पानी पीने को व्यग्र,
बहती नाक और आँख से बहती अश्रु धारा से
भीगे साँवले कपोल,
बगल ही बैठा खुद में निमग्न
एक सांवला, छोटा कद पुरुष,
उसकी बायीं कलाई में नीलाभ
रत्नजड़ित लटकती गिलेट की मोटी ज़ंजीर,
भूरे जले से केश,
हरे रंग की अनेक छेदों वाली बनियान,
दो उंगलियों के बीच फँसी सिगरेट से निकलता धुआँ,
दूसरे हाथ में बियर की एक बोतल और
सामने ही कटोरे में रखी कुछ भुनी मूँगफलियाँ,
झुग्गी की दूसरी ओर पाँच छह हमउम्र दोस्तों में
चलती ताश की बाजी,
नीचे बिछे कपडे पर लगातार गिरते और उठते रुपए, तमाशबीनों का शोर...
हवा में उड़ते बहते अपशब्द और निकृष्ट गालियाँ.
उभरे पेट लिए सड़क पर घूमते अधनंगे बालक,
फुटपाथ से सड़क तक अतिक्रमण,
अवरुद्ध राहें,
सड़क पर लगा लंबा जाम
एक परिदृश्य आम,
यही है गरीब, गरीबी और उनका धाम...
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बेहद हृदयस्पर्शी सृजन सखी
जवाब देंहटाएंओह! सर्वहारा वर्ग की जीवन-शैली का सजीव व प्रभावी चित्रण!
जवाब देंहटाएंचिंतनीय एवम यथार्थपूर्ण रचना । समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें,आपका हार्दिक स्वागत है । सादर ।
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