सोमवार, 10 जून 2019

बरस जा ऐ बदरी...

बरस जा ऐ बदरी..


तेरे आने से
इस दरख्त को भी
जीने की आस जगी है।
बरस जा ऐ बदरी
फिर से अनंत प्यास जगी है।।

पपीहा बन तेरी बूंद को तरसता रहा है।
बेरुखी तेरी पल - पल ये सहता रहा है।।
बनके परदेसी तू तो भटकती रही है।
बेवफा हर जगह तू बरसती रही है।।

तेरी उम्मीद में, ये तो ठूँठ हो गया।
भूला हरियाली, चिर नींद में सो गया।।
इसे सदियों से बस तेरा इंतजार था।
सोच माजी इसका कितना खुशहाल था।।

परिंदों का ये आसरा था बना।
मुसाफिरों को देता रहा है पना(ह)।।
कभी इस पर बहारों ने अंगड़ाई ली।
कभी इसने हवाओं से सरगोशी की।

ठूंठ बनकर के आज, ये पड़ा है यहाँ।
 है चिर प्यासा ये, तू इसकी प्यास तो बुझा।।
बरस जा ऐ बदरी.. अब और न सता।
बरस जा ऐ बदरी.......






सोमवार, 27 मई 2019

कनकपुष्प

कनकपुष्प..

जेठ की कड़कती दुपहरी में
जब तपिश और गर्मी से सब
लगते हैं कुम्हलाने ।
नर नारी पशु पाखी सबके
बदन लगते हैं चुनचुनाने ।
जब सूखने लगते हैं कंठ
और हर तरफ मचती है त्राहि त्राहि।

तब चहुंँदिस तुम अपनी
रक्तिम आभा लिए बिखरते हो ।
सूरज की तेज प्रखर
रश्मियों में जल जलकर
तुम और निखरते हो।
तुम जो जीवन की इन विडम्बनाओं को
ठेंगा दिखाते हुए सोने से दमकते हो।
अब तुम ही कहो गुलमोहर
तुम्हें कनक कहूँ या पुष्प ।

गुलमोहर तुम कनकपुष्प ही तो हो,
जो पुष्प की तरह अपना सुनहरा 
रक्ताभ लिए खिलखिलाते हो।
और जीवन के सबसे कठिन दौर में
भी बिना हताश हुए मुस्कुराते हो।

हे कनकपुष्प, यदि तुम्हें गुरु मान लें
तो अतिश्योक्ति न होगी!!!



शनिवार, 25 मई 2019

संसृति की मादकता



चुपके से यामिनी
ने लहराया था दामन. 
सागर की लहरों पर 
सवार होकर तरुवर के 
पर्णों के मध्य से, 
हौले हौले अपनी राह
बनाता चाँद तब , मंथर गति
से, उतर आया था मेरे 
मन के सूने आँगन में, 
अपनी शुभ्र धवल
रूपहली रश्मियों का
गलीचा बिछाए मीठी
सुरभित बयारों के संग 
मुखमंडल पर मीठी 
स्मित सजाकर , 
ज्योत्स्ना अपनी 
झिलमिलाती स्वर लहरियों 
की तरंगों से सराबोर हो 
मेरे हिय के तारों को
स्पंदित कर गुनगुना उठी थी 
और मैं प्रकृति के
कण कण में स्वयं को
खोकर संसृति की मादकता
में झूमती हुई उनके अलौकिक 
स्नेह बंधन में बंध घुल गई थी 
जो चाँद मुझे भेंट कर गया था. 







रविवार, 19 मई 2019

इत्र सा महकता नाम तेरा


इत्र सा महकता नाम तेरा, 
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में, 
मन बेखुद सा हो जाता है 

दिल में एक टीस सी जगती है 
जब नाम तुम्हारा आता है 
 विरहा की अग्नि जलाती है 
और तृषित हृदय अकुलाता है 

जब अधर तुम्हारे हास करे 
कांकर पाथर मुस्काता है 
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है

तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है 
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है 

शुक्रवार, 17 मई 2019

लक्ष्य साधो..


लक्ष्य साधो हे पथिक,
हौसला टूटे नहीं।
कठिन है डगर मगर, 
मंजिल कोई छूटे नहीं।।

गिरोगे सौ बार पर, 
स्मरण तुम रखना यही।
यत्न बिन हासिल कभी, 
कुछ भी तो होता है नहीं।।

पग पखारेगा वो पथ भी, 
जो निराश न होगे कभी।
काम कुछ ऐसा करो, 
मंजिल उतारे आरती।।

संग उसको ले चलो,
जो पंथ से भटका दिखे।
क्लांत हो, हारा हो गर वो, 
साथ देना है सही।।

वृक्षों की छाया तले, 
सुस्ताना है सुस्ता लो तुम।
पर ध्येय पर अपने बढ़ो, 
रुकना नहीं हे सारथी।।

Motivational poem : मना है....