भजन (16,14)
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।
भव अम्बुधि से, पार है जाना,
अब उद्धार करो मेरा।।
काम, क्रोध, व लोभ में जकड़ा,
मैं मूरख , अज्ञानी हूँ ।।
स्वारथ का पुतला हूँ भगवन
मैं पामर अभिमानी हूं।।
भान नहीं है, सही गलत का,
करता मैं, तेरा मेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।
माया के चक्कर में उलझा
मैंने कइयों पाप किये ।
लोगों पर नित दोष मढ़ा अरु
कितने ही आलाप किये ।।
जनम मरण के छूटे बंधन
मिट जाए शिव अंधेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।
मैं याचक तेरे द्वारे का
भोले संकट दूर करो ।
क्षमा करो गलती मेरी शिव
अवगुण मेरे चित न धरो ।।
रहना चाहूँ शरण तुम्हारी
रुद्र बना लो तुम चेरा।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।
दुष्टों से पीड़ित यह धरती
करती भोले त्राहिमाम ।।
व्यथित हृदय को उसके समझो
प्रभु लेती तुम्हारा नाम ।।
हे सोमेश्वर ,हे डमरूधर
कष्टों ने आकर घेरा ।
शिव शंकर ,हे औघड़दानी
बेड़ा पार करो मेरा।।