ओ कान्हा मोरे (भजन)
ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।
तुम्हरे दरस को प्यासे नैना, फिर से दरस दिखा दो।।
तुम बिन मन मेरा, लागे कहीं न अब।
तुमसे दूरी, जाए सही न अब ।।
रिश्ते- नाते , रूठ गए सब।
कैसे बिताऊँ, दिन- रैना अब।।
आकर तुम ही बता दो ।
ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।।
तुमको अपना, सबकुछ माना।
मन उजियारा, भर दो कान्हा।।
जाऊँ यहाँ या, उत मैं जाऊँ।
धर्म - अधर्म कुछ, समझ न पाऊँ।।
गीता फिर से सुना दो।
ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।।
मोर मुकुट, पीताम्बर धारी।
अंतिम आशा, तुम हो हमारी।।
है छवि तुम्हरी, अति मनभावन।
चरण में तुम्हारे, पतझड़ - सावन ।।
प्रेम की बरखा करा दो।
ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।।