मंगलवार, 4 मई 2021

ओ कान्हा मोरे

 

ओ कान्हा मोरे (भजन) 



ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो। 

तुम्हरे दरस को प्यासे नैना, फिर से दरस दिखा दो।। 



तुम बिन मन मेरा, लागे कहीं न अब। 

तुमसे दूरी, जाए सही न अब ।। 

रिश्ते- नाते , रूठ गए सब। 

कैसे बिताऊँ, दिन- रैना अब।। 

आकर तुम ही बता दो । 

ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। 


तुमको अपना, सबकुछ माना। 

मन उजियारा, भर दो कान्हा।। 

जाऊँ यहाँ या, उत मैं जाऊँ। 

धर्म - अधर्म कुछ, समझ न पाऊँ।। 

गीता फिर से सुना दो। 

ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। 


मोर मुकुट, पीताम्बर धारी। 

अंतिम आशा, तुम हो हमारी।। 

है छवि तुम्हरी, अति मनभावन। 

चरण में तुम्हारे, पतझड़ - सावन ।। 

प्रेम की बरखा करा दो। 

ओ कान्हा मोरे, बंसी फिर से बजा दो।। 



1 टिप्पणी:

  1. मोर मुकुट, पीताम्बर धारी।

    अंतिम आशा, तुम हो हमारी।।
    बिल्कुल सही कहा, सुधा दी।

    जवाब देंहटाएं

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