मंगलवार, 27 अप्रैल 2021

काल क्रम का फेरा

 


काल क्रम का फेरा 


हर साँस नम हुई है, हर आँख रोई रोई

है दौर कैसा आया, हतबुद्धि सोई सोई। 


अवसान का है तांडव 

भयाक्रांत हर मनुज है

अनुराग है विलोपित

संशय का पसरा पुँज है 

विश्वास की चिरैया, उड़ती है खोई खोई 



चहुँदिश गरल का डेरा 

है काल क्रम का फेरा 

चीख़ों में सनसनाहट 

बढ़ा तिमिर है घनेरा

चेहरों पे चढ़े चेहरे, मानव है कोई कोई 


घट आस का है फूटा 

कुंठा का लगा मेला 

पथभ्रष्ट हुआ मानव 

किया प्रकृति से खेला 

बोझिल हुई है धरणि, फिरे पाप ढोई ढोई





6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बोझिल हुई है धरणी, फिरे पाप ढोई ढोई। सच बयां कर दिया है आपने। अब तो उन सब की आंखें खुल जानी चाहिए जो न जाने कब से उन पर पट्टी बांधे बैठे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. सही कहा आपने मिनव है कोई कोई।
    सुंदर/उम्दा।

    जवाब देंहटाएं

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