मौन चिल्लाने लगा...... (नवगीत)
कौन किसका मित्र है और,
कौन है किसका सगा।
वक़्त ने करवट जो बदली,
मौन चिल्लाने लगा।
बाढ़ आई अश्रुओं की,
लालसा के शव बहे।
काल क्रंदन कर रहा है,
स्वप्न अंतस के ढहे ।।
है कहाँ सम्बंध वह जो,
प्रेम रस से हो पगा ।
द्वेष के है मेह छाए,
तिमिर तांडव कर रहा ।
जाल छल ने भी बिछाया,
नेह सिसकी भर रहा।।
है पड़ा आँधी का चाबुक,
आस भी देती दगा।
कंटकों की है दिवाली,
फूल तरुवर से झरे।
पीर ने उत्सव मनाया,
सुख हुए अतिशय परे।।
काल कवलित हुआ सवेरा,
तमस का सूरज उगा।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंगज़ब की अभिव्यक्ति । सूरज भी उगा तो तमस का। बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना सुधा जी...कंटकों की है दिवाली,
जवाब देंहटाएंफूल तरुवर से झरे।
पीर ने उत्सव मनाया,
सुख हुए अतिशय परे।। ..वाह
वाह बहुत खूब नवगीत सुधा जी।
जवाब देंहटाएंअच्छी व्यंजनाएं है नवीनता लिए।
"द्वेष के मेह छाए,
जवाब देंहटाएंतिमिर तांडव कर रहा।"
वाह! क्या लिखा है।