अंतर के पट खोल (16 ,11)
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अंतर के पट खोल तभी तो
मन होवे उजियार।
मानव योनि मिली है हमको
इसे न कर बेकार ।।
अंतस में हो अँधियारा जब,
दिखता सबकुछ स्याह ।
मन अधीर हो अकुलाए अरु ,
दिखे नहीं तब राह।।
दुर्गम जब भी लगे मार्ग तब ,
शत्रु लगे संसार ।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
मन होवे उजियार। ।
जीवन में संघर्ष भरा है,
इसका ना पर्याय ।
उद्यम ही कुंजी है इसकी ,
दूजा नहीं उपाय।।
घड़ी परीक्षण की जब आए ,
मान न मनवा हार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
मन होवे उजियार।।
अपनों का जब साथ मिले तो,
जीवन हो रंगीन।
दुख की बदरी भी छँट जाए ,
समाँ न हो गमगीन।।
निज हित के भावों को त्यागें,
कर लें कुछ उपकार।
अंतर के पट खोल तभी तो ,
मन होवे उजियार।।
सुधा सिंह 'व्याघ्र✍️