शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

क्या चलोगे साथ मेरे...नवगीत


विषय- नवगीत
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*क्या चलोगे साथ मेरे*
                  *उस गगन के पार*
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क्या चलोगे साथ मेरे,उस गगन के पार
आपसे है प्रीत हमको, करना न इनकार


साजन बाधा विघ्नों में , मैं न जाऊँ काँप
आपका है हाथ थामा , साथ देना आप
आपसे ही आस मेरी , आप हैं संसार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

सपने हमने देखे जो, पूरे हो मनमीत
हर्ष का वरदान पाएँ , रचें स्नेहिल गीत
प्यार का बंधन हमारा, ये नहीं व्यापार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

रात काली कट गई है ,आ गई शुभ भोर
स्वप्न ढेरों सज गए हैं , नाचे मन विभोर
बज उठा मन का मृदंगा, छेड़ हिय के तार
क्या चलोगे साथ मेरे,
उस गगन के पार

सुधा सिंह व्याघ्र

©®सर्वाधिकार सुरक्षित

सोमवार, 27 जनवरी 2020

कैसी ये प्यास है! (गीत )




कैसी ये प्यास है!! (गीत)
धुन :हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया



मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!
क्यों ये बुझती नहीं, कैसी ये प्यास है!!

बंद दरवाजे हैं, बंद हैं खिड़कियाँ!
ले रहा है कोई, मन में ही सिसकियाँ!!
क्यों घुटन है भरी, कैसी उच्छ्वास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

प्रेम भूले सभी, मिलती रुसवाइयाँ!
भीड़ में बढ़ रही देखो तन्हाइयाँ!!
कोई अपना कहाँ, अब कहो पास है!
मैं न जानू सनम, कैसा अहसास है!!

है बहारों का मौसम बता दो कहाँ!
ठंडी पुरवाइयां चलके ढूंढे वहाँ!!
यूँ लगे मिल गया, जैसे वनवास है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है!!

खेल किस्मत का कोई भी समझा नहीं!
परती धरती हमेशा से परती रही!!
ढ़ो रही मनुजता, अपनी ही लाश है!
मैं न जानूँ सनम, कैसा अहसास है !!

सुधा सिंह 'व्याघ्र' ✍️









रविवार, 26 जनवरी 2020

सुधा की कह मुकरियाँ


1:
जगह जगह की सैर कराए
कभी रुलाए कभी हँसाए
लगता है मुझको वह अपना
क्या सखि साजन?
 ना सखि सपना

2:
चंचल मन में लहर उठाए
आंगन भी खिल खिल मुस्काए
मैं उसकी आवाज़ की कायल
क्या सखि साजन?
 ना सखि पायल

3:
चमके जैसे कोई तारा
सबको वह लगता है प्यारा
ऊँचे गगन का व‍ह महताब
क्या सखि साजन?
 नहीं अमिताभ

4:
हर कोना उजला कर जाता
आशाओं के दीप जलाता
कभी क्रोध में आता भरकर
क्या सखि साजन?
नहीं दिवाकर

5:
करता जी फिर गले लगाऊँ
उनसे मिलने को अकुलाऊँ
मैं उनके बागों की बुलबुल
क्या सखि साजन?
ना सखि बाबुल

6:
उसका स्वर है मुझे  लुभाता
मुझको हरदम पास बुलाता
उसके मित्र सभी बाजीगर
क्या सखि साजन?
ना सखि सागर

सुधा सिंह व्याघ्र ✍️

शनिवार, 25 जनवरी 2020

कुछ जीवनोपयोगी दोहे : 4





21:
शस्य श्यामला ये धरा, मृत होती सुन आज।
वृक्षों से शोभा बढ़े , धरती का ये साज।।

22:
तरुवर का रोपण करें, तरु हैं देव समान ।
जीवन जो देते हमें, क्यों ले उन के प्रान।।

23:
वृक्षों के बिन ये धरा,हो जैसे अभिशाप।
आज अगर सुधि ली नहीं, करिए फिर संताप।।

24:
पेड़ों को मत काटिए, बढ़ता जाए ताप।
मरु बनती जाए धरा, हरियाली *दुरवाप।।

*दुरवाप - विशेषण [संस्कृत] जो कठिनता से प्राप्त हो सके । दुष्प्राप्य ।


सुधा सिंह व्याघ्र

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

स्याह परतों के नीचे :





स्याह परतों के नीचे, सत्य कब तक छुपेगा?
धूल हिय से हटा , सबकुछ निर्मल दिखेगा!!

दीपक हमारा बुझाकर न सोचो ,
तुम्हारा मकां ज्यादा रोशन दिखेगा!!

लड़खड़ाते हुओं को उठाकर दिखाओ,
उनके आशीष से दिन तुम्हारा बनेगा!!

पंथ में तुम किसी के न कंटक बिछाओ,
चले उस पंथ तुम जो, तुम्हें वह चुभेगा!!

द्वेष के भावों से कुछ न हासिल  'सखे',
रखें सद्भाव  मन  में तो जीवन खिलेगा!!

फेंक कर कीच सूरज पे भ्रम में न रहना,
अब न चमकेगा व‍ह, न दोबारा उगेगा!!

दिखे गर जो खा़मी , दिखा दें हमें,
सुधरने का हमको भी अवसर मिलेगा!!


सुधा सिंह व्याघ्र ✍️