शनिवार, 25 मई 2019

संसृति की मादकता



चुपके से यामिनी
ने लहराया था दामन. 
सागर की लहरों पर 
सवार होकर तरुवर के 
पर्णों के मध्य से, 
हौले हौले अपनी राह
बनाता चाँद तब , मंथर गति
से, उतर आया था मेरे 
मन के सूने आँगन में, 
अपनी शुभ्र धवल
रूपहली रश्मियों का
गलीचा बिछाए मीठी
सुरभित बयारों के संग 
मुखमंडल पर मीठी 
स्मित सजाकर , 
ज्योत्स्ना अपनी 
झिलमिलाती स्वर लहरियों 
की तरंगों से सराबोर हो 
मेरे हिय के तारों को
स्पंदित कर गुनगुना उठी थी 
और मैं प्रकृति के
कण कण में स्वयं को
खोकर संसृति की मादकता
में झूमती हुई उनके अलौकिक 
स्नेह बंधन में बंध घुल गई थी 
जो चाँद मुझे भेंट कर गया था. 







रविवार, 19 मई 2019

इत्र सा महकता नाम तेरा


इत्र सा महकता नाम तेरा, 
सुरभित समीर कर जाता है
कितनी है कशिश मोहब्बत में, 
मन बेखुद सा हो जाता है 

दिल में एक टीस सी जगती है 
जब नाम तुम्हारा आता है 
 विरहा की अग्नि जलाती है 
और तृषित हृदय अकुलाता है 

जब अधर तुम्हारे हास करे 
कांकर पाथर मुस्काता है 
उठती जब तुम्हरी बात पिया,
तन कस्तूरी हो जाता है

तुम घुल जाते हो अंग - अंग में ,
तब गात नहीं रह जाता है 
कण - कण परिमंडल मुदित हो
सब एकाकार हो जाता है 

शुक्रवार, 17 मई 2019

लक्ष्य साधो..


लक्ष्य साधो हे पथिक,
हौसला टूटे नहीं।
कठिन है डगर मगर, 
मंजिल कोई छूटे नहीं।।

गिरोगे सौ बार पर, 
स्मरण तुम रखना यही।
यत्न बिन हासिल कभी, 
कुछ भी तो होता है नहीं।।

पग पखारेगा वो पथ भी, 
जो निराश न होगे कभी।
काम कुछ ऐसा करो, 
मंजिल उतारे आरती।।

संग उसको ले चलो,
जो पंथ से भटका दिखे।
क्लांत हो, हारा हो गर वो, 
साथ देना है सही।।

वृक्षों की छाया तले, 
सुस्ताना है सुस्ता लो तुम।
पर ध्येय पर अपने बढ़ो, 
रुकना नहीं हे सारथी।।

Motivational poem : मना है....


शनिवार, 11 मई 2019

गलतफहमी


कभी अपनी फिक्र नहीं होती उन्हें
दूसरों की चिंता में
अपने सुनहरे जीवन की
कुर्बानी देने से भी
कभी घबराते नहीं वे.
परायों को भी अपना
बना लेने का गुर
कोई इनसे सीखे.
इनका प्रयोजन
कभी गलत नहीं था
फिर भी वे इल्जाम लगाते हैं,
कि इनके ही कारण कई
अपने प्राणों से
हाथ धो बैठे.
कई जीवन उजड़ गए.
कई घर तबाह हो गए.
और भी न जाने क्या क्या.
पर ये हमेशा निर्दोष ही साबित हुए
इनकी इसमें कोई गलती ही नहीं थी
दूसरों ने इन्हें समझने की
कभी कोशिश ही नहीं की
और स्वयं ही गलतफहमी
का शिकार हो गए.
पर इक्के दुक्के जो
गलतफहमियों
के भँवर से निकलने में
कामयाब रहे,
वे खुश रहने लगे.
इसमें गलती गलतफहमी
पालनेवाले की है न कि उनकी.
फिर भी प्रत्येक बार
वे उन्हें ही दोष देते हैं.
परिणामस्वरूप खुद ही पछताते भी हैं.
वे क्यों नहीं समझते कि
अच्छे मकसद से किए गए
जुर्म की सजा नहीं सुनाई जाती.
यही विधाता के दरबार का भी नियम है.
जबसे यह पृथ्वी प्रकट हुई है
उनका प्राकट्य भी तभी हुआ था.
तभी से उनका नाम चला आ रहा है.
वे अजर हैं और अमर भी.
और हम उन्हें
कभी कभार प्रेम से,
परंतु, ज्यादातर घृणा से
पुकारते हैं - 'लोग।'



जीवन




जाल बिछाता है और डालता है दाने
#शिकारी बनकर के जीवन , शिकार करता है।

कभी दुखों का प्रहार, कभी सुखों का उपहार
#मदारी बन उंगलियों पर नाच नचाता है।

मूस मांजर की क्रीड़ा में रंक होता राजा तो
एक क्षण में दाता अकिंचन #भिखारी हो जाता है।

पावों में डाल बंधन, हंटर से करके घायल
करके मनुज पर #सवारी,अपनी चाकरी कराता है।

कभी लाभ, कभी हानि,कभी नकद या #उधारी,
अच्छे बुरे सब कर्म छली जीवन ही कराता है।

सुधा सिंह ✍️
कोपरखैराने, नवी मुंबई