बुधवार, 1 मई 2019

मजदूर दिवस...



लो आ गया एक और दिवस
तथाकथित विश्व मजदूर दिवस।
होंगे बड़े बड़े भाषण, बड़ी बड़ी बातें,
मजदूर दिवस के नाम पर
पीठासीनों पदाधिकारियों को
होगा एक दिन का अवकाश।
पर मजदूर को इसका भी कहाँ आभास।
इस तथ्य से अनजान
अनभिज्ञ कि उसके नाम से भी
पूरी दुनिया में होती है छुट्टी।
वह डँटा रहता है पूरी निष्ठा से
अपनी जिन्दगी के मोर्चे पर
 छेनी - हथौडी लिए,
पत्थर ढोता, बड़ी - बड़ी अट्टालिकाओं
के रूप संवारता
कि दो जून की दाल रोटी
का हो जाए इंतजाम।
फिर बड़े - बड़े ख्वाब सजाता मजदूर,
अपने सुनहरे कल की उम्मीद बांधे
सो जाता है फूंस की
जर्जर झोपड़ी में
कच्ची पक्की जमीन पर
फटे लत्तों की गूदड़ी बिछाकर,
अपना स्वप्न महल सजाकर।
और रोज की तरह
गुजर जाता है यह
तथाकथित मजदूर दिवस भी।




गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

हे साईं... साईं वंदना


हे साईं.. हे साईं... 
तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं - 2
मोहपाश में फँसा हूँ मैं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं.. हे साईं - 2

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं  - 2

दुखियों का तू तारण हारा. - 2
जन जन पर तेरा अधिकार... हे साईं.. हे साईं
तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

भूख ग़रीबी लाचारी में
जीवन मेरा बीत रहा है
मन की आशाओं का घट भी
साईं अब तो रीत रहा है
न मुझको यूँ दुत्कार.... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

भटक रहा हूँ दर दर मैं तो
सभी पराए लगते अब तो
मुझको तू दाता अपना ले
है तू ही मेरा करतार... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

तेरी चौखट पर आया हूँ
मन मुरादें मैं लाया हूँ
खाली झोली भर दे मेरी
कर दे तू उपकार... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं

तू कर दे बेड़ा पार.... हे साईं.. हे साईं
मोहपाश में फँसा  हूँ मैं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं.. हे साईं - 2

हे साईं... हे साईं .... हे साईं..... हे साईं
मेरा कर दे तू उद्धार.... हे साईं .. हे साईं- 2

रे अभिमानी..



रे अभिमानी..
काश.. तुम समझ पाते स्त्री का हृदय. 
पढ़ पाते उसकी भावऩाओं को,
उसके मनसरिता की पावन जलधारा को,
जिसमें बहते हुए वह अपना सम्पूर्ण जीवन
समर्पित कर देती है तुम जैसों पुरुषों लिए.
दमन कर देती है अपनी इच्छाओं का,
और जरूरतों का ताकि तुम्हें खुश देख सके.

रे अभिमानी..
क्या तुम उसके मन की वेदना, व्यथा को जान सके.
क्या कभी अपने अहम को परे रख सके.
क्यों तुम्हारी मनुष्यता 
तुम्हारे पुरुषत्व के आगे धराशाई हो गई.
अपने मिथ्या दंभ में तुम केवल 
उसे प्रताड़ऩा का पात्र समझते रहे.
और माटी की यह गूँगी गुड़िया 
स्वाहा होती रही सदियों सदियों तक
मात्र तुम्हारी आत्म संतुष्टि के लिए. 






बुधवार, 24 अप्रैल 2019

तुम बिन....


तुम बिन .....


मेरी रगों में
लहू बनकर
बहने वाले तुम
ये तो बता दो कि
मुझमें मैं बची हूँ कितनी
तुम्हारा ख्याल जब - तब
आकर घेर लेता है मुझे
और कतरा - कतरा
बन रिसता हैं
मेरे नेत्रों से.

तड़पती हूँ मैं
तुम्हारी यादों की इन
जंजीरों से छूटने को. 
जैसे बिन जल
तड़पती हो मछली
इक इक साँस पाने को. 
ये टीस, यह वेदना 
चीरती है मेरे हृदय को. 
कर देती है मुझे प्राणविहीन
कि तुम बिन 
मेरा अस्तित्व है ही नहीं.


रविवार, 21 अप्रैल 2019

कीरचें...




वो समझ नहीं पाए, मैं समझाती रह गई।
उनके अहम में, मैं खुद को मिटाती रह गई।

उजाड़ी थी बागबां ने ही, बगिया हरी - भरी
गुलाब सी मैं, काँटों में छटपटाती रह गई।

महफिल ने यारों की, भेंट कर दी तन्हाइया
मैं तन्हाइयों में खुद से, बतलाती रह गई ।

मखमली सेज, तड़पती रही बेकस होकर
मोहब्बत रात भर तकिया भिगाती रह गई ।

दिल के जख्मों को भर न पाई 'सुधा'
अपनी पलकों से ही कीरचें उठाती रह गई ।

सुधा सिंह ✍️