अम्बर सजे तारे, खुला हिय का हर द्वार है
खुशियाँ सिमट आईं,बही प्यार की बयार है
त्योहार की ऋतु है,
बजे ढोलकी मृदंग हैं।
प्रिय साथ दे जो तू,
उठे प्रीत की तरंग है।।
उपवन भ्रमर गूँजे , करे सोलह शृंगार है।
आजा कि तेरे बिन,
बना आज मैं मलंग हूँ।
रति प्राण मेरी तू,
सुनो मैं प्रिये अनंग हूँ।।
संगम तुझी से हो,जिया की यह मनुहार है।
रंगीन हर इक पल,
भरा पूरा संसार हो।
महके पुहुप द्वारे,
अजिर गूंजे किलकार हो।।
बरसे बदरिया यूँ, लगी श्रावणी फुहार है ।
व्याघ्र छंद का शिल्प विधान ■ (1)
वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए। मापनी का वाचिक रूप मान्य होगा।
221 222
122 222 12
तगण मगण
यगण मगण लघु गुरु (लगा)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇