नवगीत
मापनी:16,14
बीते मेरे दिवस सुनहरे
संध्या की बेला आई
दिन भी क्या दिन थे वे मेरे
कली कली थी मुसकाई
1:
रिमझिम रिमझिम बरसातें भी
माँ सम लोरी गाती थी
सूरज की गरमी भी तन में
जोश नया भर जाती थी
संघर्षों की काली बदली
मन को डिगा नहीं पाई
बीते मेरे दिवस सुनहरे
संध्या की बेला आई
2:
उसकी मीठी मीठी बोली
मिसरी सी घुल जाती थी
उसके पायल की रुनझुन भी
दिल घायल कर जाती थी
सपनों की रानी वो मेरे
ढूँढू उसकी परछाईं
बीते मेरे दिवस सुनहरे
संध्या की बेला आई
3 :
श्रांत शिथिल बैठा हूँ मैं
पढ़ता हूँ उसकी पाती
पथ मैं उसका रोज निहारूँ
ओह! वह फिर लौट आती
जीवन की वो साथी मेरी
कभी नहीं वह घबराई
बीते मेरे दिवस सुनहरे
संध्या की बेला आई
बहुत सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय 🙏
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