एक ग़ज़ल नुमा रचना
तेरी यादों में रोया हूँ....
हँसा हूँ तेरी बातों पे ,तेरी यादों में रोया हूँ
प्यार है बस तुझी से तो,प्यार के बीज बोया हूँ।
खटकता हूँ सदा तुझको, मुझे य़ह बात है मालूम ,
मगर सपने तेरे देखे ,तेरी यादों में खोया हूँ।
मेरी आँखों के अश्रु भी, तुझे पिघला सके न क्यों
तेरी नफ़रत की गठरी को, दिवस और रात ढोया हूँ।
कदर तुझको नहीं मेरी, तेरी खातिर सहा कितना,
मिली रुस्वाइयाँ फिर भी, प्रीत - माला पिरोया हूँ ।
गए हो लौटकर आना, कभी दिल से भुलाना ना,
नहीं मैं बेवफा दिलबर, वफ़ा में मैं भिगोया हूँ ।
सुधा सिंह 'व्याघ्र'
कदर तुझको नहीं मेरी, तेरी खातिर सहा कितना,
जवाब देंहटाएंमिली रुस्वाइयाँ फिर भी, प्रीत - माला पिरोया हूँ ।
भावनाओं एवं शब्दों का बेहद खूबसूरती के साथ संयोजन
आपके इन सराहनीय शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंशानदार लाजवाब।
शुक्रिया सखी 🙏
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-02-2020) को "मन का मैल मिटाओ"(चर्चा अंक -3618) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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अनीता लागुरी"अनु"
वाह!बेहतरीन सृजन सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंआभार सखी 🙏
हटाएंहँसा हूँ तेरी बातों पे ,तेरी यादों में रोया हूँ
जवाब देंहटाएंप्यार है बस तुझी से तो,प्यार के बीज बोया हूँ।
बहुत खूब....,सादर नमन आपको सुधा जी
बहुत बहुत आभार सखी 🙏
हटाएंओंकार जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन सुधा जी
जवाब देंहटाएंवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग :)
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ज़िंदगी का तजुर्बा:)
शुक्रिया आदरणीय 🙏
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