सोमवार, 17 फ़रवरी 2020

बिखरे पत्ते....




जमीन पर बिखरे ये खुश्क पत्ते
गवाह हैं..
शायद कोई आंधी आई थी
या खुद ही दरख्तों ने
बेमौसम झाड़ दिया उन्हें
जो निरर्थक थे,
कौन रखता है उनको
जो बेकार हो जाते हैं
किसी काम के नहीं रहते!
मुर्दों से जल्द से जल्द
छुटकारा पा लेना ही तो नियम है,
शाश्वत नियम...
और यही समझदारी भी।
तो क्या हुआ,
जो कभी शान से इतराते थे,
और अपने स्थान पर सुशोभित थे
वो आज धूल फांक रहे हैं।
और बिखर- बिखरकर
तलाश रहे हैं
अस्तित्व अपना - अपना!!!!!!

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुंदर रचना। अभिमान किसी कार्य का नहीं । यथार्थ की धरातल पर ही रहना श्रेयस्कर है।

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  3. कौन रखता है उनको
    जो बेकार हो जाते हैं
    किसी काम के नहीं रहते!
    मुर्दों से जल्द से जल्द
    छुटकारा पा लेना ही तो नियम है,
    शाश्वत नियम...
    सटीक सार्थक एवं सुन्दर सृजन

    जवाब देंहटाएं
  4. तो क्या हुआ,
    जो कभी शान से इतराते थे,
    और अपने स्थान पर सुशोभित थे
    वो आज धूल फांक रहे हैं।
    और बिखर- बिखरकर
    तलाश रहे हैं
    अस्तित्व अपना - अपना

    बहुत खूब ,जीवन का सबसे बड़ा सत्य ,सुंदर सृजन सुधा जी ,सादर नमन

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