जमीन पर बिखरे ये खुश्क पत्ते
गवाह हैं..
शायद कोई आंधी आई थी
या खुद ही दरख्तों ने
बेमौसम झाड़ दिया उन्हें
जो निरर्थक थे,
कौन रखता है उनको
जो बेकार हो जाते हैं
किसी काम के नहीं रहते!
मुर्दों से जल्द से जल्द
छुटकारा पा लेना ही तो नियम है,
शाश्वत नियम...
और यही समझदारी भी।
तो क्या हुआ,
जो कभी शान से इतराते थे,
और अपने स्थान पर सुशोभित थे
वो आज धूल फांक रहे हैं।
और बिखर- बिखरकर
तलाश रहे हैं
अस्तित्व अपना - अपना!!!!!!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना। अभिमान किसी कार्य का नहीं । यथार्थ की धरातल पर ही रहना श्रेयस्कर है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय 🙏
हटाएंअप्रतिम रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया 🙏 सादर
हटाएंकौन रखता है उनको
जवाब देंहटाएंजो बेकार हो जाते हैं
किसी काम के नहीं रहते!
मुर्दों से जल्द से जल्द
छुटकारा पा लेना ही तो नियम है,
शाश्वत नियम...
सटीक सार्थक एवं सुन्दर सृजन
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंआभार ज्योति बहन 🙏
हटाएंवाह!बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया 🙏
हटाएंतो क्या हुआ,
जवाब देंहटाएंजो कभी शान से इतराते थे,
और अपने स्थान पर सुशोभित थे
वो आज धूल फांक रहे हैं।
और बिखर- बिखरकर
तलाश रहे हैं
अस्तित्व अपना - अपना
बहुत खूब ,जीवन का सबसे बड़ा सत्य ,सुंदर सृजन सुधा जी ,सादर नमन