रविवार, 9 फ़रवरी 2020

ऐ बचपन....


ऐ बचपन....

अपनी उंगली ऐ बचपन पकड़ा दे मुझे
घुट रही साँस मेरी , फिर से जिला दे मुझे

हारी हूँ जिंदगी की मैं हर ठौर में
लौट जाऊँ मैं फिर से उसी दौर में
ऐसी जादू की झप्पी दिला दे मुझे
अपनी उंगली ऐ बचपन पकड़ा दे मुझे

जाना चाहूँ मैं जीवन के उस काल में
झुलूँ डालों पर, कुदूँ मैं फिर ताल में
मेरे स्वप्नों का फिर से किला दे मुझे
अपनी उंगली ऐ बचपन पकड़ा दे मुझे

गुड्डे गुड़िया की शादी में जाना है फिर
सखियों से रूठकर के मनाना है फिर
फिर से बचपन की घुट्टी पिला दे मुझे
अपनी उंगली ऐ बचपन पकड़ा दे मुझे

फ्रॉक में नन्हीं कलियों को फिर से भरूँ
तितली के पीछे फिर से मैं उड़ती फिरूँ
वही खुशहाल जीवन दिला दो मुझे
अपनी उंगली ऐ बचपन पकड़ा दे मुझे

सुधा सिंह
®©सर्वाधिकार सुरक्षित

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 10 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

पाठक की टिप्पणियाँ किसी भी रचनाकार के लिए पोषक तत्व के समान होती हैं ।अतः आपसे अनुरोध है कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों द्वारा मेरा मार्गदर्शन करें।☝️👇