शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

इस गगन से परे

 गीत :इस गगन से परे (10,12)


इस गगन से परे, 

है मेरा एक गगन  

झूमते ख्वाब हैं  

नाचे चित्त हो मगन 

1

अपनी पीड़ा को 

खुद से परे कर दिया 

दीप उम्मीद का  

देहरी पर धर दिया 

अब धधकती नहीं 

मेरे चित्त में अगन ...इस गगन से... 

2

प्यारी खुशियों से 

वो जगमगाता सदा 

चंदा तारों से 

हरदम रहे जो लदा 

नाचती कौमुदी 

होता मन का रंजन .... इस गगन से...

3

हुआ उज्ज्वल धवल 

मेरे मन का प्रकोष्ठ 

गाल पर लालिमा 

मुस्कुराते हैं ओष्ठ

हर्ष से झूमता 

फिर से मेरा तन मन.... इस गगन से...


 



 

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

सुनो बेटियों

 सुनो बेटियों जौहर में तुम 

कब तक प्राण गँवाओगी। 

हावी होगा खिलजी वंशज

जब तक तुम घबराओगी।। 


रहना छोड़ो अवगुंठन में  

हाथों में तलवार धरो। 

चीर दो तुम शत्रु का सीना  

पीछे से मत वार करो।। 

डैनों में साहस भर लोगी 

तुम तब ही उड़ पाओगी। हावी.... 


दुर्गा हो तुम शक्ति स्वरूपा

महिषासुर संहार करो। 

दुर्बलताएँ त्यागो अपनी

हर विपदा को पार करो।। 

यूँ कब तक अबला बनकर तुम 

घुट घुट जीती जाओगी। हावी... 


अपनी क्षमता को पहचानो

पद दलिता बन क्यों जीना। 

दूषित नजरों से निकला जो 

विष अपमान का क्यों पीना।। 

कब तक लोक लाज में पड़कर 

खुद को ही भरमाओगी। हावी... 











 

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

लबादा


 

अपना भारी - भरकम 

लबादा उतारकर

मेरे फ़ुरसत के पलों में 

जब तब बेकल- सा 

मेरे अंतस की 

रिसती पीर लिए

आ धमकता है मेरा किरदार

और प्रत्यक्ष हो मुझसे 

टोकता है मुझे

कि तुझे तलाश रहा हूँ

एक अन्तराल से, 

मानो बीते हो युग कई 

कि कभी मिल जा 

मुझे भी तू,

तू बनकर 

वरना खो जाएगा 

उस भीड़ में जो

जो तेरे लिए नहीं बनी...

और 

वर्षों से जिसे मैं हर क्षण 

दुत्कारता आया हूँ 

कि दुनिया को भाता नहीं

तेरा सत्य स्वरूप 

तू ओढ़े रह व‍ह लबादा वरना  

खो जाएगी तेरी पहचान 

स्मरण रहे कि 

तुझे लोग उसी आडंबर में 

देखने के आदी हैं 

अनभिज्ञ है तू 

कि असत्य ही तो सदा 

बलशाली रहा है 

फिर तू क्यों

मुझे दुर्बल बनाने को आतुर है 

यह विभ्रम है, 

यह मरीचिका है 

ज्ञात है मुझे

किन्तु यही तो 

उनके और मेरे 

सौख्य का पोषण है 

और यही जीवनपर्यंत उन्हें

मेरी ओर लालायित करता है 

चल ओढ़ ले पुनः 

अपना यह सुनहरा लबादा 

कि तेरा विकृत रूप कहीं 

परिलक्षित न हो जाए। 

  

रविवार, 13 सितंबर 2020

शिव जी की स्तुति ( भजन)

 


शंकर भज लो जी, 

हाँ जी शंकर भज लो जी 

पूजन कर लो जी 

हाँ जी, शंकर भज लो जी 


शिवजी ही आराध्य हमारे

हम जीते हैं उनके सहारे 

पिनाक धारी, डमरूवाले 

शशांक शेखर, हैं रखवाले 

 सुमिरन कर लो जी 

(टेक :शंकर भज लो जी) 


भोले न चाहे चांदी सोना

उर में रखना भक्ति का कोना

दिल से जो एक बार पुकारें 

बाबा हरेंगे कष्ट हमारे 

आरती गा लो जी (टेक :शंकर भज लो जी) 


बेल पत्र से खुश हो जाएँ 

चलो धतूरा भांग चढ़ाएँ

प्रेम भजन से उन को मना लो 

जो कुछ चाहो शम्भु से पा लो 

वंदन कर लो जी (टेक :शंकर भज लो जी) 



गुरुवार, 10 सितंबर 2020

गणपति स्तुति :दोहे


1:

यही मनोरथ देव है, रखिए हम पर हाथ। 

सुखकर्ता सुख दीजिए , तुम्हें नवाऊँ माथ।। 


 2:

प्रथम पूज्य गणराज जी, पूर्ण कीजिए काज।

सकल मनोरथ सुफल हों, विघ्न न आए आज।।


 3:

वक्रतुण्ड हे गजवदन , एकदंत भगवान 

आश्रय में निज लीजिए, बालक मैं अनजान। 

4:

रिद्धि-सिद्धि दायी तुम्हीं, दो शुभता का दान 

ज्ञान विशारद ईश हे , प्रज्ञा दो वरदान।। 

 


5:

हे देवा प्रभु विनायका, गौरी पुत्र गणेश।

प्रथम पूजता जग तुम्हें , दूर करो तुम क्लेश।। 


6:

मुख पर दमके है प्रभा, कंठी स्वर्णिम हार।

प्रभु विघ्न को दूर करो, हो भव सागर पार ।। 


7:

ज्ञानवान कर दो मुझे , माँगूँ यह वरदान।

शरण तुम्हारे मैं पड़ी, देवा कृपा निधान।। 


8:

दुखहर्ता रक्षक तुम्हीं, तुम हो पालन हार।,

पार करो भव मोक्षदा, तुम ही हो भर्तार ।। 


9:

मंगलमूर्ति कष्ट हरो, संकट में है जान ।

आयी हूँ प्रभु द्वार मैं , रखिए मेरा मान ।।

 

10:

हे गणपति गणराज हे, दर्शन की है प्यास 

देव मेरी पीर हरो,तुमसे ही है आस।।